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में गहराई में जाने पर। अंगूठे में दोनों केन्द्र हैं। यह सुन्दर स्थान है। यह सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर का संगम-बिन्दु है। यह इड़ा और पिंगला का संगम-स्थल है। जो व्यक्ति यहां पहुंच जाता है, समाधि घटित हो जाती है। साधक महाप्राण की स्थिति में चला जाता है। इस केन्द्र को हमें जागृत करना है।
हाथ और पैर बहुत की महत्त्व के केन्द्र हैं। पांव को निकम्मा न मानें। जब हम भूमि पर चलते हैं, तब एड़ी विद्युत् ग्रहण कर सारे शरीर को पहुंचाती है। कितना महत्त्वपूर्ण काम है!
जब हाथ का संयम-हाथ का शिथिलीकरण, पैर का संयम-पैर का शिथिलीकरण, वाणी का संयम-वाणी का शिथिलीकरण घटित होता है, तब इन्द्रियों के तनाव कम हो जाते हैं। उनमें उठने वाली आकांक्षाओं की तरंग कम हो जाती है। जब यह सब घटित होता है, तब अध्यात्म-रमण या अध्यात्म की यात्रा शुरू होती है। जब अध्यात्म की यात्रा शुरू होती है, तब आत्मा समाधि में चली जाती है।
निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि समाधि में जाने के लिए, अध्यात्म की यात्रा शुरू करने के लिए, आदतों को बदलने के लिए सबसे पहली शर्त है-कायोत्सर्ग। जब तक हम कायोत्सर्ग करना नहीं सीख लेते, तब तक ये सब घटित नहीं हो सकते।
भावना योग की प्रारंभिक चर्चा मैंने की है। विस्तार आगे किया जाएगा।
वृत्तियों के रूपान्तरण की प्रक्रिया १६
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