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पिच्यूटरी ग्लैंड है। पैर के अंगूठे में आंख हैं, कान हैं। प्राचीनकाल में यह बताया जाता था कि जब आंख की ज्योति कम हो जाए तो पैर की अंगुलियों पर तेल की मालिश की जाए। यह कहां का सम्बन्ध है? ज्योति कम हुई आंख की और तेल मालिश करना होता है पैर की अंगुलियों पर। आज यह बात विचित्र-सी नहीं लगती। जब हमें यह पता लग गया कि पैर की अंगुलियों में आंख हैं, कान हैं, तब ये बातें अनहोनी-सी नहीं लगतीं। आंख और कान का इलाज पैर की अंगुलियों से किया जा सकता है और पिच्यूटरी या पिनियल ग्लैण्ड का समाधान पैर के अंगूठे से किया जा सकता है।
प्राचीन काल में जैन परंपरा में महाप्राण ध्यान की पद्धति प्रचलित थी। यह ध्यान की महत्त्वपूर्ण पद्धति थी। आचार्य भद्रबाहु ने बारह वर्ष तक महाप्राण ध्यान की साधना की थी। जो महाप्राण-ध्यान में जाता है, वह संसार से पूर्णरूप से विलग हो जाता है। कोई संपर्क नहीं रहता। सारे बाह्य संपर्क टूट जाते हैं। साधक गहरी समाधि की अवस्था में चला जाता है। यदि परिस्थितिवश साधक को अवधि से पहले सचेत करना होता है तो उसका एकमात्र उपाय है-पैर के अंगूठे को दबाना।
आचार्य पुष्यमित्र महाप्राण-ध्यान की साधना में लगे। एक शिष्य उनकी देखरेख के लिए नियुक्त था। कुछ दिन बीते। किसी को पता नहीं था कि आचार्य विशिष्ट साधना में संलग्न हैं। ऊहापोह होने लगा। कुछ शिष्यों ने सोचा-इसने आचार्य को मार डाला है। ऊहापोह बढ़ा। राजा तक यह बात गई। राजा आया। उत्तर साधक से पूछताछ की। उसने कहा-'आचार्य विशिष्ट साधना में संलग्न हैं। अभी साधना का काल पूरा नहीं हुआ है।' राजा ने कहा-'मैं अभी आचार्य से मिलना चाहता हूं। आवश्यक काम है। उत्तर साधक अन्दर गया। आचार्य के पैर के अंगूठे को दबाया। आचार्य सचेत हो गए। उन्होंने कहा-'असमय में कैसे उठा दिया?' उत्तर साधक बोला-‘ऐसा ही घटना-चक्र घटित हो गया। मैं क्या करूं।'
प्रश्न हो सकता है कि अंगूठे का और ध्यान का क्या संबंध हो सकता है? हमारे में समाधि घटित होती है-दर्शन-केन्द्र और ज्योतिकेन्द्र ८८, आभामंडल
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