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के लिए या अन्य किसी प्रयोजन से बाहर जाए तो आते ही सबसे पहले कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग करना अनिवार्य है। स्वाध्याय करे तो स्वाध्याय से पूर्व कायोत्सर्ग करे। ध्यान करे तो ध्यान से पूर्व कायोत्सर्ग करे। सोये तो सोने से पहले कायोत्सर्ग करे। उठे तो उठते ही कायोत्सर्ग करे। प्रतिलेखन करे, अहिंसा की दृष्टि से वस्त्रों का निरीक्षण करे तो निरीक्षण करने से पूर्व कायोत्सर्ग करे और निरीक्षण के बाद कायोत्सर्ग करे। नींद में कोई दुःस्वप्न आ जाए तो तत्काल उठकर कायोत्सर्ग करे। किसी कारणवश या प्रमादवश कोई हिंसा हो जाए, कभी झूठ बोल दिया जाए, कभी अस्वाभाविक या बुरा आचरण हो जाए तो प्रायश्चित्त के लिए कायोत्सर्ग करे। नदी को पार करे तो कायोत्सर्ग करे। प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में कायोत्सर्ग करे और प्रतिक्रमण के अन्त में कायोत्सर्ग करे। आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग, पच्चीस, पचास, सौ, पांच सौ और हजार श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग। कायोत्सर्ग ही कायोत्सर्ग। कायोत्सर्ग के बिना मुनि का कोई जीवन ही नहीं होता। यह व्यवस्था इसलिए की गई कि यदि हमें किसी बात को.भीतर तक पहुंचाना है, तो जब तक कायोत्सर्ग नहीं होगा, शरीर का शिथिलीकरण नहीं होगा, स्नायविक अनुरोध नहीं मिटेंगे, बात भीतर तक नहीं पहुंच पायेगी। कायोत्सर्ग अत्यन्त आवश्यक है। शरीर की प्रवृत्तियों का विसर्जन करें, शिथिलीकरण करें, मांसपेशियों का, हाथों का, पैरों का शिथिलीकरण करें। अध्यात्म की यात्रा कब शुरू हो सकती है? समाधि कब उपलब्ध हो सकती है? इसकी शर्त क्या है? इसकी शर्त है-कोई प्रवृत्ति न करें। हाथ का संयम करें। प्रश्न होगा कि हाथ का संयम करना कौन-सी बड़ी बात है? हाथ बहुत महत्त्वपूर्ण अवयव है हमारे शरीर का। एक्यूपंक्चर पद्धति के विकास ने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे मस्तिष्क में जो चैतन्य केन्द्र, जैविक सक्रिय-बिन्दु हैं वे सारे के सारे केन्द्र हाथ में हैं। हाथ में क्या नहीं है। जो शरीर में है वह सारा हाथ में है। फिर कहा-पैरों का संयम करो। यह और अजीब बात है। क्योंकि हाथ तो फिर भी एक उत्तम अवयव है। पैर शरीर का निम्नतम भाग है। पैर बहुत महत्त्वपूर्ण अवयव है। पैर के अंगूठे और अंगुली में चैतन्य केन्द्र हैं, ग्लैण्ड्स हैं। पैर के अंगूठे में
वृत्तियों के रूपान्तरण की प्रक्रिया ८७
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