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________________ महत्त्व है। भावना, सम्मोहन, मंत्र-ये सारे एक ही कोटि में आ जाते हैं। जप क्या है? एक ही बात को बार-बार दोहराना। बार-बार दोहराते-दोहराते वह बात भीतर तक पहुंच जाती है। और मंत्र क्या है? यही तो है मंत्र। हम मंत्र का जप करते हैं, मंत्र की आराधना करते हैं और मंत्र के द्वारा हमारी प्राणधारा, ऊर्जा भीतर की तैजस ऊर्जा तक पहुंच जाती है। जब तक वहां नहीं पहुंचती, मंत्र का जागरण नहीं होता। मंत्र का जागरण बिना, मंत्र का चैतन्य हुए बिना, मंत्र कोई काम नहीं कर सकता। वही मंत्र फल देता है जो जागृत है, चेतनावान् है। मंत्र-जागरण का अर्थ है-भीतर की तैजस शक्ति से बाहर की प्राण ऊर्जा को जोड़ देना, उसका एक संबंध स्थापित कर देना। भावना, आत्म-संशन, जप और मंत्र-ये सारे परिवर्तन के साधन हैं। अब हमें समझना होगा कि भावना का प्रयोग कैसे करें? भावना के प्रयोग की विधि को समझे बिना हम परिवर्तन घटित नहीं कर सकते। हमने यह सिद्धान्तरूप से स्वीकार कर लिया कि भावना द्वारा व्यक्तित्व का परिवर्तन हो सकता है, होता है, किन्तु प्रश्न है कि वह कैसे होता है? भावना का प्रयोग हम कैसे करें? अपने मन की बात, अपनी स्थूल चेतना की बात को भीतर तक कैसे पहुंचाएं? इस प्रक्रिया को जान लेना आवश्यक है। इस प्रक्रिया का पहला सूत्र है-कायोत्सर्ग। भावना का प्रयोग करना है तो पहले कायोत्सर्ग करना होगा। कायोत्सर्ग यदि नहीं है-शरीर की प्रवृत्तियों का शिथिलीकरण नहीं है, स्नायविक प्रवृत्तियों का शिथिलीकरण नहीं है तो बात आगे नहीं पहुंच सकती, क्योंकि आगे अवरोध है। स्नायु अवरोध पैदा कर रहे हैं। आगे जाने के लिए रास्ता साफ नहीं है। पहले रास्ते से सारे अवरोध मिटाने होंगे। कायोत्सर्ग इसका साधन है। इसके द्वारा हम समीकरण करते हैं। जैन योग परंपरा में सर्वाधिक बल कायोत्सर्ग पर दिया है। कायोत्सर्ग हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। मुनि स्थान से बाहर जाए। एक किलोमीटर या अधिक जाए, आए तो सबसे पहले उसे कायोत्सर्ग करना होता है। फिर वह दूसरे काम में लग जाता है। भिक्षा के लिए, शौच ८६ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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