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से कैसे मुक्त किया जाए-यह चिंता आज सारी दुनिया के लोग कर रहे हैं। प्राचीन समय में बुरी आदतों से छुटकारा दिलाने की चिन्ता केवल धार्मिक लोग ही करते थे, पर आज ज्ञान बहुत बढ़ गया। आज यह चिंता सब क्षेत्रों के लोग करते हैं। राजनीतिक भी करते हैं, वैज्ञानिक
भी करते हैं, डॉक्टर भी करते हैं, धार्मिक भी करते हैं, सब लोग करते हैं। रूस के वैज्ञानिकों के सामने एक प्रश्न आया कि आदमी को तम्बाकू की आदत से कैसे मुक्त किया जाए? उन्होंने सत्तर आदमी चुने। उनके कानों पर एक्यूपंक्चर का प्रयोग किया। कान के तीन भाग हैं-एक है भीतर का भाग, एक है मध्य का भाग, एक है बाहर का भाग। वैज्ञानिकों ने आदमी के कान के मध्य भाग में, जहां जैविक सक्रिय बिन्दु थे, वहां सुइयां चुभोईं। पांच दिन तक यह प्रयोग चला। इसका परिणाम यह आया कि सत्तर व्यक्तियों में से पचास व्यक्तियों ने तम्बाकू पीना सर्वथा छोड़ दिया। शेष बीस व्यक्तियों ने पीना कम कर दिया। इसका निष्कर्ष यह निकाला गया कि बहिष्कर्ण के जैविक बिन्दुओं पर यदि सुई चुभोई जाए तो व्यक्ति के मन में तम्ब कू के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती है।
प्रेक्षा-ध्यान स्वभाव-परिवर्तन की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। केवल यही एक प्रक्रिया नहीं है, और भी प्रक्रियाएं हैं। प्रेक्षा-ध्यान की पद्धति में तीन तत्त्व मुख्य हैं-प्रेक्षा, भावना और अनुप्रेक्षा। ये तीन मुख्य तत्त्व हैं। हम केवल प्रेक्षा का ही प्रयोग नहीं कर रहे हैं, केवल दर्शन-शक्ति का ही प्रयोग नहीं कर रहे हैं, हम साथ ही साथ भावना का भी प्रयोग कर रहे हैं और अनुप्रेक्षा का भी प्रयोग कर रहे हैं। भावना का प्रयोग भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है परिवर्तन के लिए। बहुत ही महत्त्वपूर्ण साधन है। आज के बहुत सारे मनोवैज्ञानिक आत्म-सम्मोहन या पर-सम्मोहन के द्वारा अनेक प्रकार की जटिलतम आदतों को बदलने में सफल हुए हैं। इस दिशा में बहुत विशाल साहित्य निर्मित हुआ है। भावना का प्रयोग आत्म-सम्मोहन या आत्म-संशन का प्रयोग है।
महावीर ने कहा-जो साधक भावनायोग से शुद्धात्मा बन जाता है, वह जल में नौका की तरह हो जाता है-भावणायोगसुद्धप्पा, जले ६२ आभामंडल
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