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हैं और तब जो सुख का अनुभव होता है वह अपूर्व होता है। व्यक्ति की प्रान्ति टूट जाती है। वह सोचता है-मैंने मान रखा था कि सुख तो पदार्थ से ही मिलता है, किन्तु आज यह स्पष्ट अनुभव हो रहा है कि जैसा सुख दर्शन-केन्द्र के जागने पर अनुभूत होता है वैसा सुख जीवन में किसी भी पदार्थ से नहीं मिला। सारी धारणाएं बदल जाती हैं, सारी यात्रा बदल जाती है और स्वभाव का परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है। मैं सोचता हूं कि धर्म के आचरण से यदि आदमी का स्वभाव न बदलता हो, बुरी आदतें न बदलती हों तो धर्म का आचरण व्यर्थ है। ऐसे धर्म का आचरण क्यों किया जाए? क्या प्रयोजन है उसका? हमारे सामने कोई प्रयोजन तो होना चाहिए। अधर्म को छोड़ें, बहुत सारी बातों का नियंत्रण करें और उपलब्ध कुछ भी न हो तो दोनों ओर से गए, न इधर के रहे, न उधर के रहे-'नो हवाए नो पाराए।'
व्यक्तित्व को रूपान्तरित करने की सबसे बड़ी प्रक्रिया है-प्रेक्षा-ध्यान। प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा हमारा पूरा व्यक्तित्व बदल जाता है। अनजाने बदलता है। हम केवल एक लक्ष्य का निर्धारण करते हैं, एक ध्येय की प्रतिमा को निर्मित करते हैं कि मन को निर्मल करना है, मन की मलिनता से होने वाली बुरी आदतों को छोड़ना है, इस प्रतिमा का निर्माण कर हम प्रेक्षा-ध्यान में बैठते हैं, शरीर की प्रेक्षा करते हैं, दीर्घश्वास की प्रेक्षा करते हैं, चैतन्य केन्द्रों की प्रेक्षा करते हैं, धीरे-धीरे रूपान्तरण घटित होने लगता है। हमें पता ही नहीं लगता, अपने आप बदलना शुरू हो जाता है। पता लगना ज्ञान की बात है। ज्ञान हो तो पता लग सकता है। ज्ञान न हो तो पता नहीं लग सकता। पता लगे या न लगे, बदलना प्रारम्भ हो जाता है। ज्ञान होना एक बात है और बदलना दूसरी बात है।
प्रेक्षा-ध्यान की साधना करने वाले व्यक्तियों में कल्पनातीत रूपान्तरण हुआ है। हमें भी ज्ञात नहीं हुआ कि रूपान्तरण क्यों हुआ और व्यक्तियों को भी ज्ञात नहीं हुआ कि रूपान्तरण क्यों हुआ।
रूस के वैज्ञानिकों ने ऐसे सूक्ष्म यंत्र बनाए कि जिनसे हमारे जैविक सक्रिय बिन्दुओं का पता लगाया जा सकता है। वहां सुइयां चुभाई जाती हैं और इच्छित परिणाम उपलब्ध किए जाते हैं। आदमी को बुरी आदतों
- वृत्तियों के रूपान्तरण की प्रक्रिया स
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