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७. वृत्तियों के रूपान्तरण की प्रक्रिया
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भावना के प्रयोग की पद्धति* कायोत्सर्ग (आटो रिलेक्शेसन) * अनुप्रेक्षा (सेल्फ एनेलिसिस, आटो एनेलिसिस) * भय क्या है? क्या मैं परिष्कार कर सकता हूं? * मैं क्या होना चाहता हूं? * परिणाम-भय से शक्ति क्षीण होती है। * अपाय विचय * विपाक विचय * दर्शनकेन्द्र पर ध्यान * विवेक * आत्मसूचन-भावना (आटो सजेशन) * व्युत्सर्ग-विसर्जन (आटो थेरेपी) * प्रतिपक्ष-भावना का चित्त-निर्माण
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मनुष्य धर्म की शरण आना चाहता है। धर्म में शरण देने की क्षमता है। 'धम्मो दीवो पइट्ठाणं।'
धर्म एक दीप है, प्रकाशपुंज है, एक प्रतिष्ठा है, आधार है, एक गति है। शरण देने वाले और भी अनेक हो सकते हैं, पर यह उत्तम शरण है, जो हमें त्राण देता है। आदमी अधर्म से बचना चाहता है और धर्म की शरण में आना चाहता है। इसका प्रयोजन है-रूपान्तरण, बदलना। अधर्म के जीवन में जो उपलब्ध नहीं होता, उसे उपलब्ध करने के लिए और जो उपलब्ध होता है, उसे छोड़ने के लिए वह धर्म की शरण में
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आभामंडल
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