________________
को करण करने के लिए पूरे शरीर की प्रेक्षा करते हैं।
स्थानांग सूत्र का एक मार्मिक प्रसंग है। जिस व्यक्ति को अतीन्द्रिय ज्ञान-अवधिज्ञान उपलब्ध होता है, तो वह अवधिज्ञानी व्यक्ति किस माध्यम से देखता है? देखने का माध्यम है-शरीर। शरीर से ही प्रकाश की किरणें निकलेंगी। अवधिज्ञान की ज्योति प्रकट होगी तो इसी शरीर से होगी। यह शरीर एक ढक्कन है। हम जब तक केवल स्नायविक संस्थान के भीतर यात्रा करते हैं और स्नायु-संस्थान के माध्यम से ही जानते-देखते हैं, जब तक शरीर करण नहीं बनता। किन्तु जब हम प्रेक्षा का प्रयोग करते हैं-अपाय विचय, विपाक विचय और संस्थान विचय का प्रयोग करते हैं, तब यह समूचा शरीर करण बन जाता है। जब पूरा शरीर करण बन जाता है, तब अवधिज्ञानी पूरे शरीर से देखता है। यदि पूरा शरीर करण नहीं बनता, केवल दायां कंधा करण बनता है, तब अवधिज्ञानी दायें कंधे से देखेगा। यदि बायां कंधा करण बनता है, तो अवधिज्ञानी बायें कंधे से देखेगा। यदि आगे के चैतन्य केन्द्र करण बन गए तो अवधिज्ञानी आगे से देखेगा। यदि पीछे सुषुम्ना में कोई चैतन्य केन्द्र करण बन गया तो अवधिज्ञानी पीछे से देखेगा। यदि सहस्र केन्द्र जागृत हो गया, करण बन गया तो अवधिज्ञानी सिर से देखेगा। यह देशावधिज्ञान है। जिसे देशावधिज्ञान प्राप्त होता है, वह व्यक्ति शरीर के किसी एक हिस्से से जानता-देखता है। जिसे सर्वावधिज्ञान प्राप्त होता है, वह पूरे शरीर से जानता-देखता है।
हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका में करण बनने की क्षमता है। वह पारदर्शी निर्मल और तेजस् बन सकती है और सारे आवरणों को दूर कर सकती है। आवश्यकता है करण बनने की।
करण के दो अर्थ हैं। एक अर्थ है शरीर का संस्थान और दूसरा अर्थ है चित्त की धारा, परिणाम। हमारे इस भौतिक शरीर का सबसे बड़ा शासक है-चित्त। समूचे शरीर में चित्त का शासन है। मन उसी का अनुचर है, उसके पीछे चलने वाला कर्मचारी है। मूल शासक है-चित्त। चित्त अपौद्गलिक है, मन पौद्गलिक है। चित्त अवर्ण है, मन सवर्ण है। इस स्थूल शरीर-तंत्र में लेश्या के बाद सबसे पहला स्थान है चित्त का।
जो व्यक्तित्व का रूपान्तरण करता है (२) ७३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org