________________
६. जो व्यक्तित्व का रूपान्तरण करता है (२)
*
१. • भावना या सम्मोहन-जप, मंत्र चित्र-निर्माण। २. • रंगों का ध्यान ३. . विचय ध्यान ४. . शरीर प्रेक्षा
चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा ६. . चैतन्य-केन्द्र और वृत्ति-जागरण
* स्वाधिष्ठान-क्रूरता, गर्व, मूर्छा, अवज्ञा, अविश्वास। * मणिपूर-सुषुप्ति, घृणा, ईर्ष्या, पैशुन्य, लज्जा, भय, मोह,
कषाय, विषाद, तृष्णा। * अनाहत-लौल्य, तोड़फोड़, कपट, वितर्क, आशा, चिन्ता,
ममता, दंभ, वैकल्य, अविवेक, अहंकार, समीहा।
आत्म-नियंत्रण से परे आत्म-शोधन की चर्चा होती है। आत्म-शोधन हुए बिना आत्म-नियंत्रण का कार्य पूरा नहीं होता। आत्म-नियंत्रण की अपनी सीमा है। आदत को बदलने के लिए, स्वभाव को बदलने के लिए, व्यक्तित्व के पूरे रूप को बदलने के लिए आत्म-शोधन आवश्यक है। यह कोरा दिशान्तरण नहीं है, मार्गान्तरीकरण नहीं है किन्तु सम्पूर्ण रूपान्तरीकरण है। मनोविज्ञान का मार्गान्तरीकरण एक मौलिक वृत्ति के मार्ग को बदलने की प्रक्रिया है, उसको दूसरी दिशा में ले जाने की पद्धति है। व्यक्ति में काम की मनोवृत्ति है। जब वह वृत्ति उदात्त बनती है, तब कला, सौन्दर्य आदि अनेक विशिष्ट अभिव्यक्तियों में बदल जाती है। आत्म-शोधन में दिशान्तरण नहीं होता, किन्तु स्वभाव मूलतः बदल
जो व्यक्तित्व का रूपान्तरण करता है (२) ६७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org