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________________ दर्द का इलाज, न कान के दर्द का इलाज, न हाथ के दर्द का इलाज। ये सारे शरीर के अंग हैं, अवयव हैं। शरीर को देखो कि बीमारी कहां है? मूल को देखो कि बीमारी कहां है? पूरे शरीर की चिकित्सा करो, ये सारे दर्द मिट जाएंगे। शरीर स्वस्थ होने पर न घुटने का दर्द रहेगा, न सिर का दर्द रहेगा, न कान और हाथ का दर्द रहेगा। यह अखंडित चिकित्सा-प्रणाली है। शरीर के खंड-खंड का इलाज नहीं, पूरे शरीर का इलाज करो। खण्डित चिकित्सा-प्रणाली से कुछ विकृतियां भी पैदा हुई हैं। भ्रान्तियां भी पैदा हुई हैं। इस प्रणाली से चिकित्सा होती है, मादक गोलियां लेते हैं, स्नायुओं में शामकता बढ़ती है और वे कुछ ठीक होते हुए से लगते है। किन्तु जब शामकता की शक्ति थोड़ी-सी क्षीण होती है, तब वह अवयव पुनः दर्द करने लग जाता है। सिरदर्द हुआ, सेरोडिन, एनासिन आदि गोलियां लीं। सिर का दर्द मिट गया-सा लगता है। रोज-रोज इन गोलियों का प्रयोग होता है। जैसे ही इनका नशा दूर होता है, वह रोग फिर प्रकट हो जाता है। इन शामक औषधियों ने, खंड चिकित्सा-प्रणाली ने कभी रोग का समाधान नहीं दिया। उसे मिटाया नहीं। ___अखण्ड चिकित्सा-प्रणाली समूचे शरीर का निदान करती है, पूरे शरीर का इलाज करती है और शरीर के मूल केन्द्रों को स्वस्थ बनाती है। हृदय की गति, लीवर की गति, गुर्दे की क्रिया आदि-आदि जब ठीक होते हैं तब जहां अवरोध है, दर्द है, वह अपने आप ठीक हो जाता है। सारे अवरोध समाप्त हो जाते हैं। मानसिक चिकित्सा-प्रणाली या आध्यात्मिक चिकित्सा-प्रणाली भी अखंड चिकित्सा-प्रणाली है। इस अखंड प्रणाली में ही विधि और निषेध साथ-साथ चलेंगे। यहां दोनों को अलग नहीं किया जा सकता। नियंत्रण का काम नियंत्रण करेगा, निषेध का काम निषेध करेगा और विधि का काम विधि करेगी। भावों की शुद्धि जहां होती है, वहां भाव शुद्ध होंगे, जहां विचार और नियंत्रण की सीमा है, वहां उनकी शुद्धि होगी। व्यक्तित्व का रूपान्तरण कैसे घटित होता है, इसे हम समझें। यह हम स्पष्ट कर चुके हैं कि व्यक्तित्व का रूपान्तरण स्थूल-शरीर ६२ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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