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में तीन महीने लग जाएंगे। तीन महीने पहले जब यह ज्ञात हो जाएगा कि अमुक रोग उभरने वाला है, तब व्यक्ति उसकी पूर्व-चिकित्सा करा लेगा, जिससे कि वह रोग उभरे ही नहीं। अनेक महीनों पूर्व यह घोषणा की जा सकती है कि यह व्यक्ति अमुक दिन मरेगा, क्योंकि आभामंडल पर मृत्यु पहले ही उतरने लग जाती है।
देवताओं का आभामंडल मृत्यु से छह मास पूर्व क्षीण होने लग जाता है। उन्हें सूचना मिल जाती है कि छह मास बाद उन्हें देवजन्म को छोड़कर अन्यत्र जाना होगा, दूसरा जन्म लेना होगा। उनकी मृत्यु को जानने का आभामंडल सशक्त माध्यम है।
हमारे सूक्ष्म-जगत् में घटित होने वाले सारे निर्देशों को आभामंडल लाता है। अध्यवसाय में, कर्म-शरीर में जो-जो घटित होने वाली घटनाएं सूक्ष्म-स्पंदन के रूप में घटित हो रही हैं, उनको भाव जगत् में उतारने वाला आभामंडल है और भाव-जगत् में जो घटनाएं उतरती हैं, उनके सारे निर्देश आभामंडल में पहुंचते हैं।। ____ हम भाषा से परिचित हैं और लिपि से परिचित हैं। हम दोनों को जानते हैं। किन्तु यह बहुत ही स्थूल बात है। मन जब कुछ सोचता है तब चित्र होता है, भाषा नहीं होती। हम जो मन में सोचते हैं, उसे भाषा में अभिव्यक्त करते हैं। सोचते हैं, तब उसका चित्र होता है और बोलते हैं, तब लिपि बन जाती है। मनःपर्यवज्ञानी हमारे मन के भावों को तत्काल जान जाता है। वह लिपि को नहीं पढ़ता, किन्तु चित्रों को पढ़ता है। एक व्यक्ति ने आज कुछ सोचा। जैसे ही उसने सोचा, विचार पूरा किया कि उसके विचारों के चित्र मन से निकलकर आकाशमंडल में फैल जाते हैं। हजार वर्ष बाद भी, एक मनःपर्यवज्ञानी, जिसमें मानसिक अवस्थाओं को पढ़ने की क्षमता है, वह उन विचारों द्वारा उत्सर्जित चित्रों को देखकर जान जाएगा कि उस अमुक व्यक्ति ने यह सोचा था। मानसिक चित्र, मन की आकृतियां आकाशमंडल में भरी पड़ी हैं। मन की भाषा चित्र की भाषा है, लिपि की भाषा नहीं है। भाव की भाषा उससे भी सूक्ष्म है। वह रेखाओं की भाषा है। वहां स्पंदन रेखाओं का रूप ले लेते हैं। अध्यवसाय की भाषा कोरी ५८ आभामंडल
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