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________________ है कि व्यक्ति छलना में आ जाते हैं, धोखे में आ जाते हैं। व्यावसायिक जगत् में न जाने इस प्रकार के कितने धोखे चलते हैं। वह मायावी व्यक्ति अपने आपको इतना मिलनसार, इतना विनम्र और इतना स्वार्थ से ऊपर उठा हुआ प्रदर्शित करता है और जब उसका अन्तरंग स्वरूप सामने आता है तब दोनों स्वरूपों में कोई सामंजस्य ही नजर नहीं आता। दोनों एक-दूसरे से अत्यन्त विपरीत। इसीलिए व्यक्तित्व के पहचान की कसौटी यह मानस-जगत् और व्यवहार-जगत् नहीं है, किन्तु भाव-जगत् है, जहां कोई धोखा नहीं हो सकता। जो जैसा है, वैसा रूप ही वहां मिलेगा। प्राचीनकाल में साधना के आचार्य अपने शिष्य की पहचान, उसकी योग्यता की परख उसके आभामंडल के आधार पर करते थे। उनकी लेश्याओं और भावमंडलों को देखकर उसे जान लेते थे। जैसा भावमंडल वैसा आभामंडल। आभामंडल बता देगा कि इस व्यक्ति का भावमंडल कैसा है और भावमंडल यह बता देगा कि व्यक्ति कैसा है। वहां कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। आज की दुनिया में ऐसे वैज्ञानिक उपकरण प्राप्त हैं, जिनके द्वारा व्यक्ति के अन्तर्मन को देखा जाता है। अपराधों की जांच की जाती है। अपराधों की खोज करने वाली शाखाएं इस प्रकार के उपकरणों का उपयोग करती हैं। ये मशीनें बता देती हैं कि अमुक ने चोरी की या नहीं की। अमुक झूठ बोल रहा है या सच? व्यक्ति को पूछने की जरूरत नहीं है। मशीन के सामने बिठा दिया जाता है। यंत्र की सुई घूमती है। ग्राफ उतरता है। पता लग जाता है-अपराध का और अपराधी का। इसमें भी धोखा हो सकता है क्योंकि सामने जब यह वातावरण होता है तो व्यक्ति के मन में भी क्रियाएं बदल जाती हैं। इसमें धोखे की संभावना है, किन्तु आभामंडल में धोखा होने की कोई संभावना नहीं है। आज के वैज्ञानिकों ने अनेक गवेषणाओं के बाद यह घोषणा की कि शरीर में जो रोग होगा, उसकी पूर्व-सूचना तीन महीने पहले मिल जाएगी। तीन महीने से पहले वह रोग आभामंडल में उतर आएगा। फिर धीरे-धीरे वह स्थूल शरीर तक पहुंचेगा। उसको वहां अभिव्यक्ति होने जो व्यक्तित्व का रूपान्तरण करता है (१) ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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