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________________ निश्चय करता है, परन्तु जो अन्तर में बदलना चाहिए वह नहीं बदलता, जो आदत बननी चाहिए वह नहीं बनती। तब व्यक्ति के मन में प्रश्न उभरता है। इसका अच्छा समाधान इस लेश्या-तंत्र के द्वारा मिलता है। यदि हम स्नायविक स्तर पर इस प्रश्न को समाहित करना चाहें तो हो नहीं सकता। स्नायविक स्तर की साधना केवल नियंत्रण तक ले जाती है, रूपान्तरण तक नहीं ले जाती। जब तक हम रूपान्तरण के स्तर पर नहीं जागते, वहां चित्तवृत्तियों का जागरण नहीं करते, चेतना को वहां नहीं जगाते, वहां ध्यान नहीं करते तो नियंत्रण हो सकता है, शोधन नहीं हो सकता। जब तक शोधन नहीं होता तब तक नियंत्रण की बात सामने आती रहेगी, रूपान्तरण नहीं होगा। रूपान्तरण के बाद नियंत्रण समाप्त हो जाता है, क्योंकि रूपान्तरित व्यक्ति के लिए नियंत्रण की जरूरत नहीं होती। जो व्यक्ति शुक्ल-लेश्या में, पद्म-लेश्या में और तेजो-लेश्या में पहुंच जाता है, उस व्यक्ति के लिए नियंत्रण की बात बहुत कम आवश्यक होती है। जो व्यक्ति वीतराग बन गया, उसके लिए नियंत्रण की जरूरत ही नहीं होती। जो व्यक्ति अप्रमत्त अवस्था में चला जाता है, उसके लिए नियंत्रण किस काम का! जब तक लेश्या के द्वारा अपने व्यक्तित्व का रूपान्तरण नहीं हो जाता, तब तक नियंत्रण को नहीं छोड़ा जा सकता। ये दोनों सीमाएं हैं और इन दोनों सीमाओं को हमें बहुत ही स्पष्टता से समझ लेना है। भाव से विचार और विचार से क्रिया। क्रिया स्थूल है। विचार उससे सूक्ष्म है और भाव उससे भी सूक्ष्म। क्रिया और विचार-दोनों स्नायविक प्रेरणाएं हैं। भाव स्नायविक प्रवृत्ति नहीं, शरीर की प्रवृत्ति नहीं है। वह स्थूल शरीर से परे, फिजिकल-बॉडी से परे जो लेश्या-शरीर या लेश्या-तंत्र है, लेश्या का चेतना केन्द्र है, उसकी प्रवृत्ति है, उसकी क्रिया है। शोधन का, रूपान्तरण का यह पहला बिन्दु है। वहां पहुंचकर हम रूपान्तरण कर सकते हैं। व्यक्ति को पहचानने का भी यही बिन्दु है। स्नायविक बिन्दु के जगत् में बहुत धोखा दिया जा सकता है और व्यक्ति को पहचानने में बहुत बड़ा धोखा हो सकता है। कोई व्यक्ति बहुत क्रूर होता है किन्तु दूसरे से मिलने में इतना विनम्र व्यवहार करता ५६ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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