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________________ जब चाहे तब डाला जा सकता है। जो व्यक्ति जैसा है, वैसा दीखना कम पसन्द करता है। वह बहुत बार अपने व्यक्तित्व पर आवरण डाले रहता है जिससे कि दूसरा उसे पहचान न सके, उसके असली रूप को जान न सके। आदमी को यथार्थ में जान पाना, पहचान पाना बहुत ही कठिन है। क्योंकि उसके व्यक्तित्व पर इतने आवरण हैं कि कोई भी मूलरूप को नहीं जान सकता। कोई भी व्यक्ति अपने आपको क्रोधी या मायावी प्रदर्शित करना नहीं चाहता। क्रोधी व्यक्ति अपने आपको अत्यनत शान्त और क्षमाशील प्रदर्शित करना चाहता है और मायावी व्यक्ति भी अपने आपको बहुत ऋजु और सरल दिखाना चाहता है। वह स्वयं को वीतराग जैसा दिखाना चाहता है। इस प्रकार व्यक्तित्व पर अनेक आवरण डाल दिए जाते हैं। व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकती। व्यक्ति को समझने में जितना धोखा होता है उतना धोखा और किसी को समझने में नहीं होता। पदार्थ को समझने में कोई धोखा नहीं होता। किन्तु व्यक्ति को सही रूप में पहचानने में धोखा होता है और इसका कारण स्पष्ट है कि व्यक्ति अपने व्यक्तित्व पर आवरण डालना जानता है। उसमें आवरण डालने की तीव्र बुद्धि है, क्षमता है। __व्यक्तित्व का रूपान्तरण दूसरी बात है। रूपान्तरण करना आवरण डालना नहीं है। रूपान्तरण में व्यक्ति बिल्कुल बदल जाता है। व्यक्ति नया हो जाता है। उसका नया जन्म हो जाता है। फिर आवरण डालने की बात नहीं होती। रूपान्तरण से व्यक्ति अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी हो सकता है। अच्छा बुरा बन सकता है और बुरा अच्छा बन सकता है। हमारी इस दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे सर्वथा अच्छा कहा जा सके और कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे सर्वथा बुरा कहा जा सके। हम जिसको बुरा मानते हैं वह अच्छा भी है और जिसे अच्छा मानते हैं वह बुरा भी है। अच्छाई और बुराई-दोनों साथ-साथ चलती हैं। अन्तर इतना-सा होता है कि अच्छाई जब उभरकर सामने आती है, तब बुराई नीचे रह जाती है और जब बुराई उभरकर सामने आती है, तब अच्छाई नीचे रह जाती है। इसलिए हमें उस बिन्दु की खोज करनी है, जहां व्यक्ति का रूपान्तरण होता है या जो व्यक्ति जो व्यक्तित्व का रूपान्तरण करता है (१) ५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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