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को रूपान्तरित करता है । खोज से यह निष्पत्ति हुई कि वह बिन्दु है - लेश्या । लेश्या एक ऐसा चैतन्य - केन्द्र है, जहां पहुंचने पर व्यक्ति का रूपान्तरण घटित होता है
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चेतना के तीन स्तर हैं
१. स्थूल चेतना का स्तर - यह स्थूल शरीर के साथ कार्यशील रहता है ।
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२. लेश्या का स्तर - यह विद्युत् शरीर - तैजस् शरीर के साथ काम करता है।
३. अध्यवसाय का स्तर - यह अति सूक्ष्म शरीर (कर्म शरीर ) के साथ काम करता है ।
शरीर तीन हैं - स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और अति सूक्ष्म शरीर । स्थूल शरीर है - औदारिक, सूक्ष्म शरीर है - तैजस् और अति सूक्ष्म शरीर है - कर्म शरीर । इन तीन स्तरों पर तीन चेतना केन्द्र काम करते हैं । एक है - चित्त चेतना - केन्द्र, दूसरा है - लेश्या चेतना - केन्द्र और तीसरा है - अध्यवसाय चेतना - केन्द्र | ये तीनों तीन स्तरों पर काम करते हैं । चित्त का संबंध हमारे स्थूल शरीर से है । चित्त, मन और इन्द्रियां - ये सब स्थूल शरीर से संबद्ध हैं । लेश्या हमारे स्थूल से संबद्ध नहीं है। जिनके मस्तिष्क है, सुषुम्ना है, नाड़ी संस्थान है उनके लेश्या होती है जिन तो जीवों में ये नहीं होते, केवल एक स्पेन इन्द्रिय ही होती है, उनके भी लेश्या होती है । यह लेश्या - तंत्र, भावों का निर्माण करने वाला तंत्र, यह चेतना केन्द्र सबसे अधिक सक्रिय और जाग्रत होता है । जितनी स्नायविक क्रिया है, वह सारी शरीर से सम्बन्ध रखती है । मन का कोई भी विचार, वाणी की कोई भी प्रवृत्ति, शरीर की कोई भी क्रिया और बुद्धि या चित्त की कोई भी क्रिया इस शरीर - तंत्र के बिना, स्नायविक योग के बिना नहीं होती । ज्ञानवाही स्नायु और क्रियावाही स्नायु - दोनों प्रकार के स्नायु इन सारी क्रियाओं का संपादन करते हैं, किन्तु लेश्या के लिए इन स्नायुओं की कोई अपेक्षा नहीं है । यह स्नायु से परे, स्थूल शरीर से परे है। यहां यह भी स्पष्ट हो जाता है कि आत्म-नियंत्रण स्नायविक स्तर पर होता है और आत्म-शोधन लेश्या के स्तर पर होता है ।
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