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प्रतिक्रियाएं प्रकट करते हैं। यह रंग का सबसे बड़ा संस्थान है-लेश्या-तन्त्र। हमारा सारा जीवन-तन्त्र रंगों के आधार पर चलता है। आज के मनोवैज्ञानिकों और वैज्ञानिकों ने यह खोज की है कि व्यक्ति के अन्तर्-मन को, अवचेतन मन को और मस्तिष्क को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला है-रंग। रंग हमारे समूचे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। यह बहुत बड़ी सचाई है। हम सबसे ज्यादा रंग से प्रभावित होते हैं। रस का भी प्रभाव होता है, गन्ध और स्पर्श का भी प्रभाव होता है, किन्तु रंग जितना प्रभाव डालता है, उतना कोई नहीं डालता। हम सब रंगों से प्रभावित होते हैं। हमारे जीवन का संबंध रंग से है। हमारी मृत्यु का संबंध रंग से है। हमारे पुनर्जन्म का संबंध रंग से है। हमारे भावों-विचारों का संबंध रंग से है। जिस प्रकार के रंग हम ग्रहण करते हैं, वैसे ही हमारे भाव बन जाते हैं। जब हम हिंसा का विचार करते हैं तब काले रंग के परमाणु आकर्षित होते हैं और हमारी आत्मा के परिणाम भी काले रंग के अनुरूप बन जाते हैं। जैसा सान्निध्य मिलता है, वैसा बन जाता है। स्फटिक के सामने जैसा रंग आता है, वह वैसा ही दीखने लग जाता है। स्फटिक का अपना रंग नहीं होता। उसके सामने काला रंग आता है तो वह काला, पीला रंग आता है तो वह पीला, लाल रंग आता है तो वह लाल और नीला रंग आता है तो वह नीला बन जाता है। आत्मा के परिणामों का अपना कोई रंग नहीं होता। सामने जिस रंग के परमाणु आते हैं। आत्मा का परिणाम उस रंग में बदल जाता है। वैसी ही हमारी भाव-लेश्या हो जाती है। यह संस्थान हमारे जीवन की प्रत्येक गतिविधी से सम्बद्ध संस्थान है। इसलिए इस विषय पर हमें बहुत विस्तार से चर्चा करनी होगी।
एक व्यक्ति मरता है। वह अगले जन्म में पैदा होता है। पूछा गया कि वह अगले जन्म में क्या होगा? कैसा होगा? उत्तर मिला-जिस लेश्या में मरेगा उसी लेश्या में उत्पन्न होगा। जिस रंग में मरेगा उसी रंग में पैदा होगा।
ज्ञान और ध्यान के साथ, कर्म और जीवन के साथ, मृत्यु और पुनर्जन्म के साथ-सबके साथ रंगों का सम्बन्ध है। स्थूल व्यक्तित्व का
स्थूल और सूक्ष्म जगत का सम्पर्क-सूत्र ४६
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