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कर रहे हैं।
अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के जो स्राव हैं, वे कर्मों के स्राव भीतर से आते हैं लेश्या के द्वारा और यहां आकर वे सारे बाहरी व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं। सारा बाहरी व्यक्तित्व उससे बदल जाता है। जो भी माल आता है, वह रंगीन आता है। भीतर जाता है, वह भी रंगीन जाता है। बाहर आता है, वह भी रंगीन आता है। कषाय शब्द का चुनाव भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। कषाय का अर्थ होता है-रंगा हुआ। लाल रंग से रंगा हुआ या केवल रंगा हुआ। रंगे हुए कपड़े को काषायिक कपड़ा कहा जाता है।
भीतर में बड़ा रंग का संस्थान है-कषाय का तंत्र। वहां जो कुछ भी जाता है वह रंगीन होकर ही जाता है। वहां बिना रंग की कोई वस्त नहीं है। वहां जो कुछ है वह सारा रंगा हआ है। रंग ही रंग का सारा संस्थान है। वहां से जो कुछ भी आता है वह रंगकर आता है। जितने कर्म के परमाणु हैं वे सारे के सारे रंग के परमाणु हैं।
एक आदमी हिंसा का विचार करता है। तो काले रंग के परमाणुओं को आकर्षित करता है। एक आदमी असत्य बोलता है तो काले रंग के परमाणुओं को आकर्षित करता है। गंदले काले रंग के परमाणु। एक आदमी क्रोध करता है तो मलिन लाल रंग के परमाणु आकर्षित होते हैं। रंग दो प्रकार के होते हैं। एक है-प्रकाशमान रंग और एक है-गंदला रंग। एक आदमी माया का व्यवहार करता है तो गंदले नीले रंग के परमाणु आकर्षित करता है। जो आदमी बुरे कार्य करता है, अठारह पाप-स्थानों का सेवन करता है, उनका आचरण करता है तो गन्दा काला, गन्दा नीला, गन्दा लाल, गन्दा पीला, गन्दा सफेद पांचों गन्दे रंगों के परमाणु आकर्षित होते हैं और वे भीतर के कषाय-तंत्रों तक पहुंच जाते हैं। उनको पहुंचाने वाली है-लेश्या। संपर्क-सूत्र का सारा कार्य लेश्या के हाथ में है। फिर वहां से पक-पकाकर जब विपाक होता है, पूरे रंग कर जब वे बाहर आते हैं, तब लेश्या उन्हें संभालती है और उन्हें बाहर तक पहुंचा देती है, विपाक तक पहुंचा देती है। वे विपाक हमारे भिन्न-भिन्न अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में आकर भिन्न-भिन्न प्रकार की वेदनाएं और ४८ आभामंडल
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