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ऐसा कौन-सा विषय है, जिसके साथ रंग का सम्बन्ध न हो। यह अंगुली हिलती है। इसका भी अपना रंग है। एक अंगुली का नाम है-तर्जनी। इसका काम है तर्जना देना। इसे ही तर्जनी क्यों कहा गया? दूसरी अंगुली को तर्जनी क्यों नहीं कहा गया? इसे तर्जनी इसलिए कहा गया कि इसका रंग तर्जना देने वाला है। हमारी अंगुलियों का, हमारे घुटने और एड़ी का, हमारे पैर तक के भाग का रंग, हमारे कटि तक के भाग का रंग
और शरीर के ऊपरी भाग तक का रंग अलग-अलग है। सारा रंग ही रंग है। जो भी हम खाते हैं, वह आहार-पर्याप्ति के कोष में जाता है। आहार-पर्याप्ति की वे कोशिकाएं सबसे पहले उन परमाणुओं को रंग और रूप में बदलती हैं। उनको रंग देती हैं। हमारा सारा विचार रंग से सम्बद्ध है। हमारा चिन्तन, स्मृति, रंग से सम्बद्ध है। सारे व्यक्तित्व को लेश्या रंग प्रभावित किए हुए है। इसलिए इस विषय पर विस्तार से चर्चा करना आवश्यक है।
पांचवां संस्थान है-योग का, प्रवृत्ति का। यह भी व्यक्तित्व के पहचान का एक लक्षण है। योग का अर्थ है-चंचलता। प्रश्न हो सकता है कि यह जीव का लक्षण कैसे बन सकता है? चंचलता परमाणु में भी होती है। इसका उत्तर है कि जीव में स्वेच्छाकृत चंचलता होती है, परमाणु में स्वेच्छाकृत चंचलता नहीं होती। प्राणी का लक्षण केवल गति नही है, किन्तु स्वेच्छाकृत गति है। गति अचेतन में भी होती है। दुनिया मे ऐसा कोई पदार्थ नहीं है, जिसमें गति न हो। पुद्गल और जीव-दोनो में गति है। पुद्गल में स्वेच्छाकृत गति नहीं होती, जीव में स्वेच्छाकृत गति होती है। इसलिए योग भी जीव का एक लक्षण है।
ज्ञान, दर्शन, चारित्र, उपयोग और वेद-ये पांचों ही जीवों के लक्षण हैं। जिसमें ज्ञान होता है, वह जीव और जिसमें ज्ञान नहीं होता, वह अजीव। जिसमें देखने की शक्ति होती है, वह जीव और जिसमें देखने की शक्ति नहीं होती, वह अजीव। जिसमें अनियत आचरण की क्षमता होती है, वह जीव जिसमें यह क्षमता नहीं होती, वह अजीव। जिसमे उपयोग की शक्ति-चाहे तो जानना और न चाहे तो न जानना-होती है वह जीव और बाकी अजीव। जिसमें दूसरे प्राणी को उत्पन्न करने ५० आभामंडल
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