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________________ तथ्यों को सचोट कहने में हिचकते थे, और कभी-कभी मन-ही-मन उनकी यथार्थता के प्रति संदेह भी अभिव्यक्त कर देते थे। किन्तु हम विज्ञान के बहुत आभारी हैं। आज के वैज्ञानिकों ने इतने सूक्ष्म तथ्य प्रतिपादित किए हैं कि अतीत में प्रतिपादित सूक्ष्म सत्यों को प्रकट करने में हमें कोई संकोच नहीं होता। एक छोटा-सा उदाहरण प्रस्तुत करता हूं। हमारा यह शरीर सेलों से बना है, कोशाणुओं से निर्मित है। शरीर की प्रत्येक कोशिका एक अवयव का निर्माण करती है। ये सेल बहुत सूक्ष्म हैं। एक इंच की लंबाई में २५०० कोषाणुओं को सीधी लाइन में रखा जा सकता है। हर सूक्ष्म कोषाणु एक बड़ा कारखाना है। उसके ग्यारह विभाग हैं। उसका अपना विद्युत्-गृह है, जो विद्युत् पैदा करता है। प्रत्येक कोशिका के पास अपना मस्तिष्क है जो सारा नियंत्रण करता है। पूरी व्यवस्था है। उसका एक विभाग ऐसा है जो प्राप्त वस्तुओं को रसायन में बदल देता है, उसे विटामिन बनाता है। प्रत्येक सेल में दस हजार से लेकर एक लाख तक निर्देश लिखे हुए होते हैं। यदि उनको छापा जाए तो ब्रिटेन के एन्साइक्लोपीडिया जैसे दो हजार भाग (वाल्यूम) निकल सकते हैं। ऐसे अरबों-खरबों सेल हैं हमारे शरीर में। इनकी तुलना किससे करें, कैसे करें? यह स्थूल शरीर के सूक्ष्म जगत् की बात है। सूक्ष्म शरीर का सूक्ष्म जगत् कैसा होगा, कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिस सूक्ष्म शरीर ने इस स्थूल शरीर का निर्माण किया, उस स्थूल शरीर की यह सूक्ष्म रचना है। तो जो निर्माता है सूक्ष्म शरीर, उसकी सूक्ष्मता पर विचार करें तो शायद आदमी का दिमाग काम ही नहीं कर पाएगा। बहुत सूक्ष्म है, सूक्ष्म शरीर का सूक्ष्म जगत्। इस सूक्ष्म शरीर ने स्थूल शरीर के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए या स्थूल शरीर को जीव का व्यक्तित्व प्रदान करने के लिए दस बड़े कारखाने खोल रखे हैं। इन कारखानों का काम यह है कि जो सूक्ष्म आए उसे स्थूल बनाना, उसे स्थूल शरीर में भेजना और इस स्थूल शरीर के व्यक्तित्व को जीव का स्वरूप प्रदान करना, जिससे कि हम पहचान सकें कि यह जीव है। - गति का कारखाना ऐसा है जो किसी को मनुष्य, किसी को पशु, ४४ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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