________________
हम कोरे आत्म-नियंत्रण को भी साधक न मानें और कोरे आत्म-शोधन को भी साधक न मानें। जब आत्म-नियंत्रण और आत्म-शोधन-दोनों हैं, दोनों का योग होता है, तब अध्यात्म की यात्रा सम्पन्न होती है और हम जहां पहुंचना चाहते हैं, वहां पहुंच जाते हैं।
हम दो व्यक्तित्वों में जीते हैं। एक है स्थूल व्यक्तित्व और दूसरा है सूक्ष्म व्यक्तित्व। इस भौतिक शरीर से, पौद्गलिक शरीर से जो हमारा संबंध है वह सारा स्थूल व्यक्तित्व है। हमें जीव माना जाता है। हम जीव के रूप में पहचाने जाते हैं, इसलिए कि हमारे स्थूल शरीर में कुछ ऐसी क्रियाएं हैं, लक्षण हैं जो केवल प्राणी में मिलते हैं, पदार्थ में नहीं। पदार्थ और प्राणी के बीच एक भेदरेखा खींची गई। पदार्थ अचेतन होता है और प्राणी सचेतन। सचेतन और अचेतन के बीच भेदरेखा खींची गई, कुछ लक्षण निर्धारित किए। जिनमें अमुक लक्षण मिलते हैं, वह प्राणी, और जिनमें ये लक्षण नहीं मिलते वह प्राणी नहीं होता। वह अचेतन है, पदार्थ है, पौद्गलिक है। हमारे इस स्थूल शरीर की जो भेदरेखाएं हैं वे हमें जीव प्रमाणित करती हैं। हम उनके द्वारा जीव प्रमाणित होते हैं। हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व, हमारी दृष्टि में जीव नहीं है, आत्मा नहीं है। हमारा स्थूल व्यक्तित्व, हमारी दृष्टि में जीव है, आत्मा कोई माने या न माने। सूक्ष्म व्यक्तित्व से स्थूल व्यक्तित्व तक पहुंचने के लिए दस संस्थाओं का निर्माण किया गया है। गति, इन्द्रिय, कषाय, लेश्या, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वेद। ये दस बड़े-बड़े संस्थान हैं, कारखाने हैं। आज के बड़े-से-बड़े कारखाने इनकी तुलना में छोटे पड़ते हैं। छोटे भी इतने कि एक ओर पर्वत है तो एक ओर राई है। वर्तमान की दुनिया के सारे औद्योगिक संस्थानों के आंकड़े हम एकत्र करें और एक स्थूल शरीर के कारखाने के आंकड़े एकत्र करें तो दोनों की तुलना नहीं हो सकेगी। हमारे शरीर का कारखाना सबसे बड़ा प्रमाणित होगा। आज के विज्ञान ने सूक्ष्मता के जगत् में हमारी दृष्टि को इतना स्पष्ट कर डाला है कि आज पुरानी सूक्ष्म बातों को पुष्ट करने के लिए या प्रमाणित करने के लिए हमारे मन में साहस है, तनिक भी हिचक नहीं है। विज्ञान की इस सूक्ष्म जगत् की यात्रा से पूर्व हम स्वयं प्राचीन
स्थूल और सूक्ष्म जगत् का सम्पर्क-सूत्र ४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org