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उपवास होता है, कोरा कायक्लेश होता है, कोरी प्रतिसंलीनता होती है, यदि उनके साथ ज्ञान और ध्यान नहीं होता तो मनोविज्ञान की बात सही हो जाती है कि कोरे आत्म-नियंत्रण से मनुष्य में विकृतियां उभरती हैं । किन्तु अध्यात्म के साक्षात् द्रष्टाओं ने किसी एक ही सत्य का प्रतिपादन नहीं किया और किसी एकांगी साधना का उपदेश नहीं दिया। उन्होंने समग्र मार्ग प्रस्तुत करते हुए कहा कि आध्यात्मिक जीवन की उपलब्धि के लिए, उन्नत जीवन की उपलब्धि के लिए, अच्छे जीवन के निर्माण के लिए आत्म-नियंत्रण और आत्म-शोधन - दोनों जरूरी हैं। दोनों साथ-साथ चलने चाहिए। दोनों का योग होना चाहिए ।
महावीर से पूछा गया - 'क्या ज्ञान मोक्ष का मार्ग है?' 'नहीं, कोरा ज्ञान मोक्ष का मार्ग नहीं है ।'
'क्या दर्शन मोक्ष का मार्ग है?'
'नहीं ।'
'क्या चरित्र मोक्ष का मार्ग है?'
'नहीं ।'
आप आश्चर्य करेंगे यह सुनकर कि महावीर कहते हैं - 'ज्ञान मोक्ष का मार्ग नहीं है। दर्शन मोक्ष का मार्ग नहीं है । चारित्र मोक्ष का मार्ग नहीं है । फिर प्रश्न होता है कि मोक्ष का मार्ग कौन-सा है ? फिर महावीर से पूछा - "भंते! तो फिर मोक्ष का मार्ग कौन-सा है?' महावीर ने कहा - ' अकेला ज्ञान, अकेला दर्शन, अकेला चारित्र मोक्ष की ओर नहीं ले जा सकते। जब तीनों का योग होता है तब मोक्ष घटित होता है ! ज्ञान, दर्शन और चारित्र - तीनों का समन्वित प्रयोग ही मोक्ष का मार्ग है । ये अकेले मोक्ष की ओर नहीं ले जा सकते।'
हम किसी एक बात को पूरी बात न मान लें । हम इस दृष्टि से सोचें कि कोई व्यक्ति किसी भी सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है. चिन्तन प्रस्तुत करता है तो वह मात्र एक स्फुलिंग है, एक चिनगारी है । हम एक चिनगारी को पूरी आग न मान लें, उसे मात्र एक चिनगारी ही मानें। आग और है, चिनगारी और है । एक कथन को, एक प्रतिपादन या चिन्तन को पूरा न मानें।
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आभामंडल
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