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________________ केन्द्र से संचालित होती हैं। सारी काम की वृत्तियां यहां उभरती हैं और मनुष्य इसके सहारे अपनी काम-वासना पूरी करता है। यह प्रकृति द्वारा प्रदत्त संस्थान है काम-वासना की पूर्ति के लिए। प्रतिसंलीनता के द्वारा हम इसे बदल सकते हैं। आचारांग में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रतिपादित है कि जो आस्रव हैं वे ही परिस्रव हैं और जो परिस्रव हैं वे ही आस्रव हैं। जो कर्मबंध के कारण हैं, वे ही कर्ममुक्ति के कारण हैं और जो कर्ममुक्ति के कारण हैं, वे ही कर्मबंध के कारण हैं। जो काम-वासना का संस्थान है, वही ब्रह्मचर्य का संस्थान है। कोई अलग से संस्थान नहीं है। हम अपनी साधना के द्वारा, ऐसे प्रयोगों के द्वारा इस काम-वासना के संस्थान को ब्रह्मचर्य की शक्ति के संस्थान के रूप में बदल सकते हैं। यह इन्द्रिय प्रतिसंलीनता है। जो इन्द्रियां जिस काम के लिए शरीर-रचना में प्राप्त हैं, साधना के द्वारा उनकी आदतों को बदल दें। यह प्रतिसंलीनता का अभ्यास है। आंख का काम है-रूप को देखना। उसके साथ जुड़ा हुआ है प्रियता और अप्रियता का भाव। सहज जुड़ा हुआ है। आदमी आंख के द्वारा दो ही दृष्टियों से देखना जानता है। या तो वह प्रियता को देखेगा या अप्रियता से देखेगा। यदि हम इन्द्रिय-प्रतिसंलीनता का अभ्यास करते हैं तो साधना के द्वारा इन इन्द्रियों के स्रोत को बदल देते हैं। फिर आंख से देखेंगे, पर उसके साथ न प्रियता होगी और न अप्रियता होगी। मध्यस्थ भाव, समता भाव रहेगा। ___कषायों की प्रतिसंलीनता भी होती है। कषाय चार हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ । ये चारों हमारे मस्तिष्क के विशेष केन्द्रों द्वारा बाहर आते हैं, प्रकट होते हैं। यह प्रकृति है, स्वभाव है। एक छोटा बच्चा अपने पिता के साथ दर्शन करने आया। उसने अपने पिता से कहा-'जो पुस्तक और कॉपी खरीद कर लाए हैं, उस पर मेरा नाम लिख दें।' पिता ने कहा-'नाम लिखने की क्या जरूरत है? ऐसे ही इनका उपयोग करो।' बच्चे ने आग्रह किया, पर पिता ने नाम नहीं लिखा। बच्चा गुस्से में आ गया। वह हाथ-पैर पटकने लगा। अच्छे-बुरे का नियंत्रण कक्ष ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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