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________________ पिता को एड़ियों से मारने लगा। यह देखकर मैं हैरान रह गया। इतना छोटा बच्चा और इतना तेज गुस्सा! यह प्रकृति का अनुदान है। यह हमारे जन्म के साथ भीतर से आने वाला अनुदान है। इसके लिए साधना करने की जरूरत नहीं, यह स्वयं प्राप्त होता है। क्रोध आना स्वाभाविक है। यह प्रकृति का अनुदान है। इसमें आश्चर्य नहीं होता। साधना के द्वारा जब हम प्रतिसंलीनता करते हैं तब उन संस्थानों को बदल डालते हैं, प्रतिसंलीन कर डालते हैं। यह हमारी साधना की उपलब्धि है। यह तब हो सकती है जब क्रोध आदि को उभारने वाले निमित्तों से बचा जाए। कुछ लोग कहते हैं-'निमित्तों से बचने की क्या जरूरत है? कोई जरूरत नहीं है। अपने अन्तर में वैराग्य होना चाहिए। व्यवहार की भूमिका की हमें जरूरत क्या है? हमें तो निश्चय की भूमिका पर चलना चाहिए। मैं मानता हूं कि ऐसा करने वाले सामान्य जनता के साथ अन्याय करते हैं और उन्हें गलत रास्ते पर ले जाते हैं। जब निमित्तों के प्रति हम जागरूक नहीं होंगे और निमित्तों से नहीं बचेंगे तो कषाय को कभी नहीं छोड़ा जा सकेगा। कषाय के रास्ते को नहीं बदला जा सकता। कषाय मंद तभी हो सकते हैं जबकि हम कषाय को उत्तेजित करने वाले पदार्थों से भी बचें। पास में कोई व्यक्ति एक करोड़ रुपया रखकर कहे कि मुझे संतोष है। कोई लोभ नहीं है, ममत्व नहीं है। पड़ा है मेरा क्या लिया। मैं समझता हूं, इसके पीछे शत-प्रतिशत वंचना है। एकाध व्यक्ति लाखों में कोई अपवादस्वरूप निकल सकता है। अन्यथा धोखा ही धोखा है। बाह्य संबंधों से हम मुक्त नहीं हो सकते और कषाय को मंद करने की बात सोचते हैं तो बड़ा धोखा होता है। जो व्यक्ति कषाय को मंद करना चाहता है, उसे कषाय की प्रतिसंलीनता करनी ही होगी। मन, वचन और काया-ये तीनों योग हैं। तीनों क्रिया-तंत्र के अंग हैं। इनका काम है-कार्य करना। जो काम करेगा वह चंचल होगा। वह कभी स्थिर नहीं होगा। आपको कपड़े धोने हैं और आप चाहें कि हाथ स्थिर रहें, हिलें ही नहीं, यह नहीं हो सकता। कपड़े कभी नहीं धुलेंगे। रसोई पकानी है और आप कायोत्सर्ग कर बैठ जाएं, स्थिर हो जाएं तो ३६ आभामंडल उत्तजित करने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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