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बहुत आवश्यक है। जब तक स्नायुओं को नया अभ्यास नहीं दिया जाता, स्नायुओं को नई आदत के निर्माण का अभ्यास नहीं दिया जाता, तब तक व्यक्तित्व का निर्माण नहीं किया जा सकता। विलियम जेम्स ने अपनी पुस्तक 'दि प्रिन्सिपल ऑफ साइकोलॉजी' में मनोवैज्ञानिक ढंग से चर्चा करते हुए लिखा है-'अच्छा जीवन जीने के लिए अच्छी आदतों का बनाना जरूरी है। और अच्छी आदतों के निर्माण के लिए अभ्यास जरूरी है। यदि हम अभ्यास किए बिना ही यह चाहें कि हमारी आदतें बदल जायें तो ऐसा कभी नहीं होगा। असफलता ही हाथ लगेगी। उन्होंने अच्छी आदतों के निर्माण के लिए कुछ सूत्र प्रस्तुत किए हैं१. अच्छी आदतें डालनी हों तो सबसे पहले अच्छी आदतों का
चिन्तन करो, अभ्यास करो और बुरी आदतों को रोको। २. अच्छी आदतें डालने के लिए शरीर को एक विशेष प्रकार
का अभ्यास दो, क्योंकि शरीर की विशेष स्थिति का निर्माण किए बिना हमारी आदतें अच्छी नहीं हो सकतीं। स्नायुओं को हमने जो पहले से आदतें दे रखी हैं, उनको यदि हम नहीं बदलते तो वे एक चक्र की भांति चलती रहती हैं। ठीक समय आता है और मिठाई खाने की बात याद आ जाती है, क्योंकि हमने जीभ को एक आदत दे रखी है। ठीक समय आता है और स्नायु उस वस्तु की मांग कर लेते हैं। खाने की, सोचने की, विचार करने की, कार्य करने की जैसी आदत हम स्नायुओं में डाल देते हैं, वैसी आदत हो जाती है। जो लोग बहुत ऊंचे मकानों में रहते हैं, वे पहली बार जब सीढ़ियों से उतरते हैं तब बहुत सावधानी से उतरते हैं। दूसरी-तीसरी बार उतरते हैं तो सावधानी कम हो जाती है और जब सौवीं बार उतरते हैं तो कोई सावधानी की जरूरत नहीं होती। पैर अपने आप एक-एक सीढ़ी उतरते हुए नीचे आ जाते हैं। चलने के साथ मन को जोड़ने की वहां आवश्यकता नहीं होती। टाइप करने वाले प्रारंभ में अक्षरों को देख-देखकर टाइप करना सीखते हैं। जब वे अभ्यस्त हो जाते हैं, तब उनकी अंगुलियां
अच्छे-बुरे का नियंत्रण कक्ष ३३
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