________________
होगा कि अध्यात्म का समूचा तंत्र, अध्यात्म का समूचा उपदेश और धर्म की सारी गाथाएं कषाय को मंद करने के लिए कही गयी हैं । उनका एकमात्र प्रयोजन भी यही है । अपरिग्रह, अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, क्षमा,
।
संतोष, दान, शील- इन सबका उपदेश इसीलिए है कि कषाय मंद हो, उपदेश और उपदेश का अगला चरण है- अभ्यास । यह सबने जान लिया कि कषाय को मन्द करने के लिए आत्म-नियंत्रण जरूरी है, अभ्यास जरूरी है, फिर प्रश्न होता है कि अभ्यास कहां से प्रारंभ करें? सबसे पहले क्या करें ? इस प्रश्न पर धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में चर्चाएं हुई हैं तो मनोविज्ञान ने भी इस प्रश्न पर विचार किया है। दोनों विचारधाराओं की चर्चा कुछ मिलती-जुलती - सी है । अनेक दार्शनिकों ने इस प्रश्न पर चिन्तन किया है । मैं वर्तमान के चिन्तन को पहले प्रस्तुत कर, बाद में अतीत के चिंतन को प्रस्तुत करना चाहूंगा ।
टालस्टाय ने इस प्रश्न का सुन्दर समाधान दिया । उन्होंने कहा- 'अच्छे जीवन की पहली शर्त है-आत्म-नियंत्रण और आत्म-नियंत्रण की पहली शर्त है - उपवास । हमें आत्म-नियंत्रण का अभ्यास उपवास से शुरू करना चाहिए ।' यह है एक महर्षि का चिंतन, जो वर्तमान युग का साधक, साधु या महर्षि कहलाता था ।
अब हम प्राचीन चिंतन को लें। भगवान महावीर ने तपस्या के बारह प्रकार बतलाए। उन्होंने कहा - 'आत्म-नियंत्रण का प्रारंभ तपस्या से करो, अनशन से शुरू करो।' प्राचीन चिंतन और वर्तमान चिंतन - दोनों एक बिन्दु पर मिल गए। दोनों के कथन में पूर्ण साम्य है । यह यथार्थ है । जो भी आत्मा का अनुभव करने वाले साधक हैं, वे दो मार्ग या दो लक्ष्य पर नहीं पहुंचते । सम्प्रदायों के विचार दो दिशाओं में पहुंच सकते हैं, दो दिशागामी हो सकते हैं, किन्तु अध्यात्म के विचार दो दिशागामी नहीं हो सकते । अध्यात्म को बांटा नहीं जा सकता । अध्यात्म के मार्ग से जो पहुंचेगा वह एक ही बिन्दु पर पहुंचेगा ।
भगवान महावीर ने कहा- 'अनशन से आत्म-नियंत्रण शुरू करो। आत्मा के नियंत्रण में सबसे बड़ी बाधा है भोजन । भोजन सुस्ती लाता है ।' टालस्टाय ने कहा- 'जो भोजन का संयम नहीं करता वह सुस्ती
अच्छे-बुरे का नियंत्रण कक्ष ३१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org