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________________ तत्त्व के बीच एक समझौता है, कषाय तंत्र का एक स्पष्ट निर्देश है कि चैतन्य के स्पंदन यदि कषाय वलय को भेद कर बाहर जाते हैं तो वे शुद्ध तभी रह सकते हैं जब वे केवल ज्ञेय के प्रति जाते हैं। ज्ञेय के सिवाय यदि वे और कहीं भी जाते हैं तो कषाय तंत्र की छत्रछाया में ही जा सकते हैं,. अन्यथा नहीं जा सकते। चैतन्य के जो असंख्य स्पंदन बाहर निकलते हैं, वे कषाय तंत्र को पार कर, अतिसूक्ष्म शरीर को पार कर बाहर आते हैं, उनका एक स्वतंत्र तंत्र बन जाता है। वह है अध्यवसाय का तंत्र। यह तंत्र तैजस् शरीर के साथ-साथ सक्रिय होकर काम करता है। जिन लोगों ने आत्मा को जाना, आत्मा का साक्षात्कार किया, सूक्ष्मता में गए, उन लोगों ने मन को कभी महत्त्व नहीं दिया। उन्होंने सदा अध्यवसाय को महत्त्व दिया। यही एक ऐसा बिन्दु है जहां से आत्मा को शरीर से पृथक् किया जा सकता है और उनके संबंध और असंबंध की व्याख्या की जा सकती है। मन मनुष्य में होता है, विकासशील प्राणियों में होता है। जिनके सुषुम्ना है, मस्तिष्क है, उनमें मन होता है। सब जीवों में मन नहीं होता। किन्तु अध्यवसाय सब जीवों में होते हैं। वनस्पति में भी अध्यवसाय होते हैं। एकेन्द्रिय जीवों से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों तक-सब जीवों में अध्यवसाय होते हैं, किन्तु मन सब में नहीं होता। जिनके मन होता है, उनके भी कर्मबंध होता है और जिनके मन नहीं होता, उनके भी कर्मबंध होता है। कर्म का बंध सब जीवों को होता है। सूत्रकृतांग सूत्र में एक सुन्दर चर्चा है। एक मनुष्य रात को सोया है। उसका स्थूल मन निष्क्रिय है। वह इतनी गाढ़ निद्रा में है कि वह स्वप्न नहीं देख रहा है, फिर भी उसके हिंसा का कर्मबंध हो रहा है। बहुत महत्त्वपूर्ण उल्लेख है। एक ओर तो हम कह देते हैं कि जब मन सक्रिय होता है तब कर्म का बंध होता है और जो व्यक्ति गाढ़ निद्रा में है, उनका मन अव्यक्त है, स्थूल चेतना अव्यक्त है, स्वप्न भी नहीं आ रहे हैं, फिर भी कर्म का बंध हो रहा है और वह भी हिंसा के कर्म का बंध हो रहा है। यदि दृष्टिकोण उसका मिथ्या है तो न केवल हिंसा का कर्मबंध हो रहा है, अपितु अठारह पापों का भी बंध हो रहा है। यह सुनकर शिष्य व्यक्तित्व की व्यूह-रचना : आत्मा और शरीर का मिलन-बिन्दु १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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