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जैसे ही जागा, सारी मूर्च्छा टूट गई । जागते ही सारे आवरण हट गए । जब तक मूर्च्छा में था, जब तक आवरण में था, जब तक नींद में था तब तक पर्दा बना रहा। जैसे ही जागा आवरण हट गया । जैसे ही आवरण हटा, विघ्न की चट्टान, अन्तराय की चट्टान चूर-चूर हो गई । तत्काल केवलज्ञान उदित हो गया। सबसे पहले मूर्च्छा को टूटना होता है । मूर्च्छा टूटे बिना ज्ञान का आवरण नहीं हटता, शक्ति का अवरोध नहीं मिटता । ज्ञान का विकास तभी सम्भव है जब मूर्च्छा टूटे, मोह का सम्पूर्ण विलय हो । मूर्च्छा को तोड़े बिना दोनों बातें घटित नहीं होतीं । पहले ज्ञान प्राप्ति का प्रयत्न न करें, पहले अन्तराय को हटाने का प्रयत्न करें। सबसे पहले मूर्च्छा को तोड़ने का प्रयत्न करें; जागें । जगने का एकमात्र उपाय है, चेतना को जगाना। जब तक ध्यान के द्वारा चेतना का सारा जागरण नहीं होगा तब तक भाव - तन्त्र की मूर्च्छा को तोड़ना संभव नहीं होगा । हमारा प्रयत्न यह हो कि भाव-तन्त्र की मूर्च्छा टूटे ।
लेश्या का सिद्धान्त जागरण की प्रेरणा है । हम जागें, जागें । मन दौड़ रहा है, मन के प्रति जागें, मन की चंचलता के प्रति जागें। हाथ हिल रहा है, हाथ के प्रति जागें । यह मूल्यवान् है पर इतना मूल्यवान् नहीं है । बहुत मूल्यवान् है भाव के प्रति जागना । जिस भाव के कारण यह मन विक्षेप उत्पन्न कर रहा है, उड़ रहा है, मन का घोड़ा दौड़ रहा है । मन के प्रति जागने से मन स्थिर नहीं होगा। हाथ के प्रति जागने से हाथ स्थिर नहीं होगा। हाथ में जो शक्ति प्रकम्पन पैदा कर रही है, मन को जो शक्ति चला रही है, वह है सारी भाव की शक्ति । इस भौतिक शरीर से आगे एक तन्त्र है जो अपनी शक्ति का विकिरण करता है, जो आन्तरिक शक्ति का उत्पादक है, वह है लेश्या - तन्त्र, भाव-तन्त्र । जब हम भाव के प्रति जागते हैं तब परिवर्तन होता है । भाव-तन्त्र को जाग्रत रखने का एकमात्र उपाय है सतत जागरूकता, अप्रमाद। हम अपने अस्तित्व के प्रति, चैतन्य के प्रति जागरूक बनें, मूर्च्छित बनें। हमारे में शून्यता न आये । मूर्च्छा आती है, हमें कोई पता नहीं चलता । नींद आती है, हमें चेतना को जगाने के लिए मादक पदार्थों के सेवन की कोई आवश्यकता नहीं है। ध्यान के लिए मादक वस्तुओं
२२४ आभामंडल
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