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ने उसे एक खाली कुएं में डाल दिया। वहां उसे भैंसे प्राप्त नहीं थे 1 भैंसे नहीं मारे जा सके। इससे काल शौकरिक अहिंसक नहीं बना, क्योंकि उसके भाव नहीं बदले। केवल हाथों के रुक जाने से, केवल हाथों से हिंसा न होने पर वह अहिंसक नहीं बना। यदि किसी हिंसक व्यक्ति को मूर्च्छित कर दिया जाये, उस स्थिति में न वह मन से हिंसा कर पाता है और न शरीर से हिंसा कर पाता है। क्या वह अहिंसक हो गया? नहीं, वह अहिंसक नहीं होता। क्योंकि वह मूर्च्छित है, नींद में है; सोया हुआ है, उसकी बाहरी चेतना लुप्त है । वह हिंसक है क्योंकि उसका भाव-तन्त्र निरन्तर सक्रिय रहता है। उसके निरन्तर हिंसा का बंध हो रहा है। जब तक भाव का परिवर्तन नहीं होता, लेश्या का परिवर्तन नहीं होता तब तक केवल शरीर को निष्क्रिय बना देने, मन को मूर्च्छित कर देने मात्र से काम नहीं चलता। मन की मूर्च्छा और शरीर की निष्क्रियता हमारे कर्म - तन्त्र की मूर्च्छा हो सकती है, किन्तु भाव-तन्त्र पर उसका कोई प्रभाव नहीं होता । हमें भाव - तन्त्र का शोधन करना है, जब भाव - तन्त्र का शोधन हो जाता है, तब शरीर हिले-डुले, मन चले, फिर भी न हिंसा का भाव होगा, न हिंसा का व्यापार होगा, न कोई बुरी प्रवृत्ति होगी । मूल करणीय है भाव का शोधन । मूर्च्छा में विश्वास बढ़ाने वाले जितने साधना के उपक्रम हैं, मूर्च्छा को प्रोत्साहित करने वाली साधना की जितनी पद्धतियां हैं, वे सब हमारे कर्म - तन्त्र तक पहुंचती हैं, भाव-तन्त्र तक उनकी पहुंच नहीं होती । उन लोगों का ऐसा विश्वास है कि कर्म-तन्त्र निष्क्रिय हो जाने पर सब कुछ घटित हो जाता है, किन्तु जिन लोगों ने गहरे में जाकर देखा तो उन्हें अनुभव हुआ कि जब तक भाव-तन्त्र निष्क्रिय नहीं होता तब तक मूर्च्छा नहीं टूटती । जब मूर्च्छा नहीं टूटेगी तो वह नये मार्ग से प्रवाहित होने लगेगी । मूर्च्छा की समाप्ति हुए बिना आध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता । महावीर को कैवल्य लाभ हुआ । इंद्रभूति गौतम ने पूछा - "भंते! तत्त्व क्या है ?' गौतम ! उत्पन्न होता है, नष्ट होता है और स्थिर रहता है, यही तत्त्व है। ज्ञान ध्रुव है, ज्ञान की मलिनता नष्ट होती है, और केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है।' गौतम ने पूछा - 'भंते! केवलज्ञान कैसे प्राप्त हुआ ?' गौतम! मैं पूरा जाग गया।
लेश्या : एक प्रेरणा है जागरण की २२३
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