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को शक्तिशाली बनाना चाहता है। श्री का अर्थ होता है-लक्ष्मी और श्री का अर्थ होता है आभा। लक्ष्मी का संवर्धन और आभा का संवर्धन।' 'ही' का अर्थ है लज्जा और ह्री का अर्थ है अनुशासन। सामाजिक प्राणी के लिए लज्जा भी जरूरी है और अनुशासन भी जरूरी है।
भावों को बदलने के लिए, लेश्याओं को शुद्ध करने के लिए हमारे सामने दो प्रयोग प्रस्तुत हैं। एक है रंगों का ध्यान और दूसरा है मन्त्रों का प्रयोग। मंगल-भावनाओं का प्रयोग और भाव-संस्थान को सक्रिय बनाने वाले, पवित्र बनाने वाले शब्दों का प्रयोग। हम इन दोनों प्रयोगों के द्वारा भाव-संस्थान को गंगाजल जैसा निर्मल बनाएं, गंगोत्री जैसा निर्मल बनाएं और शरीर, मन तथा अध्यात्म की चिकित्सा करें। हम शरीर के दोष और अपाय, मन के दोष और अपाय तथा अध्यात्म के दोष यानी मूर्छा के दोष और अपाय-इन सब अपायों को समाप्त करें और उपायों का प्रयोग करें। ऐसी स्थिति में लेश्या का सिद्धान्त केवल तात्त्विक सिद्धान्त नहीं रहेगा, वह हमारे लिए चिकित्सा की पूरी पद्धति बन जाएगा।
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आभामंडल
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