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के साथ इन सबका क्या सम्बन्ध है?' वैद्य बोला-'खांसी में जो दही खाता है वह बूढ़ा इसलिए नहीं होता कि वह पहले ही मर जाता है। उसके घर में चोरी इसलिए नहीं होती कि वह रात भर खांसता रहता है। एक क्षण के लिए भी सो नहीं पाता। उसको कुत्ता नहीं काटता क्योंकि वह बिना लाठी के चल ही नहीं सकता। जब हाथ में लाठी रहती है तब कुत्ता कैसे काटे?' रोगी ने कहा-'यह बात है तो मैं दही कभी नहीं खाऊंगा।' उसने दही खाना छोड़ दिया।
कैसा होता है मनुष्य का स्वभाव! जब वैद्यों ने दही खाने की मनाही की तब वह दही खाने की हठ करता रहा। जब वैद्य ने दही खाने को कहा तो उसने दही खाना नहीं चाहा। जब शब्द भाव का स्पर्श कर लेते हैं, तब यथार्थ घटित हो जाता है। यदि शब्द की शक्ति का ठीक उपयोग करें, शब्दों का ठीक चुनाव करें तो भाव-संस्थान में बहुत बड़ा परिवर्तन हो सकता है। ____ हमने मंगल-भावना के कुछ सूत्र प्रस्तुत किए हैं। सभी साधक मंगल-भावना करें। मंगल भावना के नौ सूत्र हैं
१. श्रीसंपन्नो ऽहं स्याम-मैं श्रीसंपन्न बनूं। २. ह्रीसंपन्नो ऽहं स्याम-मैं लज्जासंपन्न बनूं। ३. धीसंपन्नो ऽहं स्याम-मैं बुद्धिसंपन्न बनूं। ४. धृतिसंपन्नो ऽहं स्याम-मैं धैर्यसंपन्न बनूं। ५. शान्तिसंपन्नो ऽहं स्याम-मैं शान्तिसंपन्न बनूं। ६. शक्तिसंपन्नो ऽहं स्याम-मैं शक्तिसंपन्न बनूं। ७. नन्दीसंपन्नो ऽहं स्याम-मैं आनन्दसंपन्न बनूं। ८ तेजःसंपन्नो ऽहं स्याम-मैं तेजसंपन्न बनूं। ६. शुक्लसंपन्नो ऽहं स्याम-मैं पवित्रतासंपन्न बनूं।
ये सूत्र हमारी आन्तरिक भावना को जागृत करने वाले हैं। मैं 'श्री'सम्पन्न बनूं। लेश्या के सिद्धान्त में दरिद्रता को कोई स्थान नहीं है। जिसकी लेश्याएं पवित्र होती हैं, वह महान् ऋद्धि वाला होता है, महान् वैभव वाला होता है। जैसे सामाजिक व्यक्ति अपनी श्रीवृद्धि करना चाहता है वैसे ही शुद्ध-लेश्या वाला अध्यात्म का साधक अपने आभामण्डल
लेश्या : एक विधि है चिकित्सा की २०७
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