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को बन्द कर देता है और कभी दूसरे को खोलता है और पहले को बन्द कर देता है । वही संक्लेश के प्रवाह को बाहर लाता है और वही असंक्लेश के प्रवाह को बाहर लाता है । अच्छे-बुरे विचारों, भावनाओं और आचरणों का उत्तरदायी वही है । जिसके हाथ में दरवाजे को खोलने और बन्द करने की क्षमता है, सारा उत्तरदायित्व उसका हो जाता है । फिर वह उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं हो सकता ।
प्रश्न यह है - वह कौन-सी चाबी है जिससे संक्लेश के दरवाजे को ताला लगा दिया जाए, बन्द कर दिया जाए और असंक्लेश के दरवाजे का ताला खोल दिया जाए, दरवाजा खोल दिया जाये? आप सोचते होंगे कि ऐसी चाबी हाथ लग जाए तो संक्लेश के दरवाजे को कभी नहीं खोलेंगे। उसे सदा बन्द रखेंगे और असंक्लेश के दरवाजे को सदा के लिए खोल देंगे । उसे कभी बन्द नहीं होने देंगे। ऐसा हो जाने पर बुरा विचार समाप्त, बुरा भाव समाप्त और बुरा आचरण समाप्त । आप उत्सुक हैं कि ऐसा हो जाए । यह उत्सुकता स्वाभाविक है, अच्छी है।
संक्लेश के दरवाजे को खोलने की भी एक चाबी है और असंक्लेश के दरवाजे को खोलने की भी एक चाबी है। दोनों की दो चाबियां हैं। ऐसा न हो कि आप उलट-पलट कर दें। दोनों के अलग-अलग ताले हैं। दोनों की अलग-अलग चाबियां हैं। जब हम मूर्च्छा की चाबी का प्रयोग करते हैं तो संक्लेश का ताला खुल जाता है और भीतर का प्रवाह बाहर आता है। व्यक्ति बुरे विचारों, बुरी भावनाओं और बुरे आचरणों से भर जाता है । भीतर का स्रोत फूट पड़ता है। बुराई का बहुत बड़ा दरवाजा खुल जाता है। जब तक यह दरवाजा बन्द नहीं होता, बुराई से छुटकारा नहीं पाया जा सकता। जब जागृति की, जागरण की चाबी घुमाते हैं तो असंक्लेश का ताला खुलता है और अच्छाई का बहुत बड़ा 'द्वार उद्घाटित हो जाता है । यह जागृति की चाबी दो काम करती है यह संक्लेश के ताले को खोलती भी है और संक्लेश के ताले को बन्द भी करती है । यह जागृति जब हस्तगत होती है, तब आदमी चाहे या न चाहे भीतर से एक ऐसा प्रवाह फूट पड़ता है कि सारे पवित्र विचार, पवित्र भावनाएं और पवित्र आचरण अपने-आप बाहर आने लगते हैं ।
व्यक्तित्व के बदलते रूप
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