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ही चलेगा। सब बिखर जाएगा। मनुष्य ने सबसे पहले एक समझौता किया। उसकी शर्त है- 'मैं तुम्हें बाधा नहीं पहुंचाऊंगा, तुम मुझे बाधा नहीं पहुंचा सकोगे।' इस समझौते के आधार पर समाज बना, गांव बने। हजारों व्यक्ति साथ रहने लगे। यदि यह समझौता नहीं होता तो न समाज बनता और न गांव बसते। सारा जंगल ही होता, जहां एक जानवर दूसरे पर झपटता है, मारता है। प्रेम अहिंसा और मैत्री की पहली निष्पत्ति है-समूह में रहना, गांव का बसना। गांव या नगर का विकास, समाज का विकास इसी अहिंसा के समझौते के आधार पर हुआ है। परिवार का विकास भी इसी आधार पर हुआ है। यदि काल अनियंत्रित होता, उसका उपभोग मुक्त होता तो न परिवार बनता, न समाज बनता और न गांव बनता। मुक्त-भोग एक-दूसरे परिवार में हस्तक्षेप है। यह हस्तक्षेप अमान्य रहा है समाज-व्यवस्था में। ऐसी स्थिति में जहां अध्यात्म साधना का प्रश्न है, व्यक्ति के उदात्तीकरण का प्रश्न है वहां मुक्त-भोग की बात कभी मान्य नहीं हो सकती। ____ मैं मानता हूं कि किसी भी वृत्ति का दमन नहीं होना चाहिए। रिप्रेशन खतरनाक होता है। मनोविज्ञान ने इस पर बहुत प्रहार किया है। यह उचित भी है। दमन नहीं करना चाहिए, दबाना नहीं चाहिए, इसका तात्पर्य यह कभी नहीं होता कि उसे सर्वथा मुक्त कर देना चाहिए। हमें तीसरा मार्ग खोजना चाहिए। न केवल समाज-व्यवस्था की दृष्टि से, किन्तु व्यक्तित्व के विकास की दृष्टि से भी हमें तीसरा मार्ग खोजना चाहिए। न दमन का मार्ग अच्छा है और न मुक्तता का मार्ग अच्छा है। अच्छा मार्ग है रूपान्तरण का, उदात्तीकरण का, शोधन का।
प्रश्न है कि काम के रूपान्तरण के सूत्र कौन-से हैं? उसके उदात्तीकरण और शोधन के सूत्र कौन-से हैं?
नीत्से ने कहा-'सब धर्मों ने सेक्स को जहर पिलाकर मारना चाहा, किन्तु वह मरा नहीं। इतना अवश्य हुआ कि वह विषाक्त होकर, जहरीला होकर जीवित हो गया। आज काम विषाक्त होकर जी रहा है। वह जहरीला सर्प बनकर डस रहा है। यह बहुत बड़ी सचाई है। जहां दमन होता है, वहां काम मरता नहीं, विषाक्त हो जाता है। व्यक्ति काम को
आभामण्डल और शक्ति-जागरण (१) १७७
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