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________________ महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखना प्रारंभ किया। वे विवाहित थे। अभी-अभी विवाह संस्कार हुआ था। वे दिन-रात उस ग्रन्थ के लेखन में लग गए। सारा अनुराग ग्रन्थ-लेखन में लग गया। बारह वर्ष बीत गए। प्रतिदिन नवोढ़ा आती और बुझते दीपक में तेल डालकर चली जाती। उसका यह क्रम प्रतिदिन चलता। ग्रन्थ समाप्ति पर था। रात का समय। वाचस्पति लिख रहे थे। पत्नी आई। दीपक में तेल डाल वह जाने लगी। वाचस्पति ने आंखें ऊपर उठाकर पूछा-'अरे! तुम कौन हो? यहां क्यों आई?' उसने कहा- 'मैं आपकी पत्नी भामती हूं।' यह सुनते ही उन्हें विवाह की स्मृति हो आई। बारह वर्ष का विवाह-संस्कार साकार हो उठा। उन्होंने कहा-'माफ करना! मैं भूल गया था। मुझे भान ही नहीं था कि मैंने विवाह किया है। अन्त में उन्होंने अपनी पत्नी भामती से क्षमा मांगी और उन्हें अपनी भूल का आभास हुआ। ___इतने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना तभी हो पाई, जब अनुराग का प्रवाह बदला। यदि ऊर्जा का प्रवाह काम-वासना की ओर बहता तो इस महान् ग्रन्थ की रचना नहीं हो पाती। इसलिए मैथुन को, संभोग या काम-वासना को नैसर्गिक मान लेने पर भी यदि हम नैसर्गिक प्रणालिका में बहने वाली ऊर्जा को दूसरी दिशा में नहीं ले जाएंगे तो फिर मनुष्य पशु ही होगा। वह आज के अर्थ में मनुष्य नहीं बन पाएगा। इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम नैसर्गिक राग को एक नया रास्ता, नया मार्ग दें और उसके लिए नया दरवाजा खोलें। एक बात है कि मुक्तभोग का प्रतिपादन करने वाली विचारधारा के अनुसार प्रेम की महासत्ता का ही दूसरा नाम है 'काम'। अतः प्रेम को विस्तार देने के लिए काम की मुक्तता अनिवार्य है। काम प्रेम का ही अंग है अर्थात् राग का ही अंग है। यह सच है कि सब कुछ राग से ही चलता है, प्रेम से ही चलता है, किन्तु राग को मुक्त करने की बात बहुत भयंकर है। काम का मुक्त उपयोग कैसे संभव हो सकता है? हम इस संभावना पर विचार करें। क्रोध प्राकृतिक धर्म है। क्या हम उसका मुक्त उपयोग करें? यदि क्रोध का मुक्त उपयोग होने लग जाए तो न परिवार चलेगा, न पड़ोस चलेगा और न समाज १७६ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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