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________________ उपलब्धि। जब सत्य उपलब्ध होता है तब दुःखों के उन्मूलन की प्रक्रिया चालू हो जाती है। अन्त में उसका फलित होता है कि सारे दुःख उन्मूलित हो जाते हैं। साधक को 'सव्वदुक्खपहीणमग्ग'-दुःखों को प्रक्षीण करने का मार्ग प्राप्त हो जाता है। आज तक जिन लोगों ने दुःखों का उन्मूलन किया है, वे व्यक्ति सत्य को उपलब्ध थे। जिन्होंने सत्य को उपलब्ध नहीं किया, वे दुःखों से कभी नहीं छूटे। हो सकता है कि पत्तों और फूलों को तोड़कर यह मान लिया कि वृक्ष की जड़ें ही उखाड़ डालीं। यह भ्रान्ति है, किन्तु फूलों, फलों और पत्तों को तोड़ने मात्र से बात समाप्त नहीं होती। हमें जड़ों को उखाड़ फेंकना होगा, तभी दुःख समाप्त हो सकेंगे। __ मनुष्य जड़ की बात ही नहीं सोचता। वह केवल ऊपर की बात ही सोचता है। जो ऊपर दीखता है वह उसी की व्याख्या करता है, भीतर की व्याख्या नहीं करता। इसीलिए बहुत सारी समस्याएं पलती हैं। मनुष्य ध्वज होना चाहता है, नींव का पत्थर नहीं होना चाहता। मनुष्य पत्तों को देखता है, जड़ को नहीं देखता। जब तक जड़ को, नींव के पत्थर को, नहीं देखा जाता तब तक समस्या का समाधान नहीं हो सकता। जो मूलभूत समस्या है, वह है अस्तित्व की समस्या। सारे दुःखों की यह जननी है। सब कुछ यहीं से आ रहा है। रोग एक दुःख है, मौत एक दुःख है। मौत इतना दुःख नहीं है, जितना दुःख मौत का भय है, जन्म इतना दुःख नहीं है, जितना दुःख जन्म का भय है। रोग इतना दुःख नहीं है, जितना दुःख रोग का भय है। इस प्रकार हम जाने-अनजाने एक प्रकार के अज्ञात भय से आक्रान्त हो जाते हैं और वह भय हमें निरन्तर सताता रहता है। बड़ी से बड़ी घटना घटित हो और यदि हम अपने मन को उसके साथ नहीं जोड़ते हैं, अपने संवेदन को नहीं जोड़ते हैं तो कोई दुःख नहीं होगा। एक मार्मिक घटना है। पिता को परदेश गए बारह वर्ष हो चुके थे। घर की याद सताने लगी। वह घर के लिए रवाना हुआ। बारह वर्षीय पुत्र भी पिता की खोज में निकला। संयोग ऐसा मिला कि एक ध्यान क्यों? ११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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