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________________ दर्शन केन्द्र को सक्रिय करते हैं। तब बाल-सूर्य का लाल रंग दीखने लग जाता है। उस समय व्यक्ति को कितनी आनन्दानुभूति होती है, बताई नहीं जा सकती। उस आनन्द का प्रत्यक्ष अनुभव करने वाला ही उसे जान सकता है, वह उसे बता नहीं सकता। इस लाल रंग के अनुभव से, तेजो-लेश्या के स्पंदनों की अनुभूति से अन्तर्जगत् की यात्रा प्रारंभ होती है। लाल रंग नाड़ी-संस्थान और रक्त को सक्रिय बनाता है। जब हम दर्शन-केन्द्र पर लाल रंग का ध्यान प्रारम्भ करते हैं और जब वह ध्यान सधता है, तब आदतों में परिवर्तन आना प्रारम्भ हो जाता है। कृष्ण, नील और कापोत-लेश्या के काले रंगों से होने वाली आदतें तेजो-लेश्या के प्रकाशमय लाल रंग से समाप्त होने लगती हैं। अचानक स्वभाव में परिवर्तन आता है। पद्म-लेश्या का रंग पीला है। यह रंग बहुत शक्तिशाली होता है। यह गर्मी पैदा करने वाला रंग है। लाल रंग भी गर्मी पैदा करता है। उत्क्रमण की सारी प्रक्रिया गर्मी बढ़ाने की प्रक्रिया है। तेजो लेश्या में भी गर्मी बढ़ती है, पद्म लेश्या में भी गर्मी बढ़ती है और जब वह गर्मी पूरी मात्रा में बढ़ जाती है, चरम शिखर को छू लेती है और गर्मी बढ़ने का अवकाश नहीं रहता तब शुक्ल-लेश्या के द्वारा गर्मी का उपशमन करते हैं और तब निर्वाण घटित हो जाता है। शारीरिक दृष्टि से पीला रंग मस्तिष्क और नाड़ी-संस्थान को बल देता है। जिस बच्चे की बुद्धि और स्मृति-शक्ति कमजोर हो, मस्तिष्क कमजोर हो, उसे यदि पीले रंग के कमरे में रखा जाए तो उसमें परिवर्तन आना शुरू हो जाता है। जो व्यक्ति दस मिनट तक मस्तिष्क में पीले रंग का ध्यान करता है, उसका बुद्धिबल शक्तिशाली होता जाता है। पीले रंग का जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव है वह है-चित्त की प्रसन्नता। आज रंग के विज्ञान में बहुत खोजें हुई हैं और हो रही हैं। रंग का मनोविज्ञान कहता है कि पीला रंग मन की प्रसन्नता का प्रतीक है। इससे मन की दुर्बलता मिटती है, आनन्द बढ़ता है। आगम कहते हैं-पीत-लेश्या से चित्त प्रशान्त होता है, शान्ति बढ़ती है और आनन्द बढ़ता है। दर्शन की शक्ति पीले रंग से विकसित होती है। दर्शन का रंगों का ध्यान और स्वभाव-परिवर्तन १०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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