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________________ जाता है, दूध भावित किया जाता है, चीनी और सब्जी भावित की जाती है और न जाने कितनी चीजें भावित की जाती हैं। चुंबक पर पानी की बोतलें रखी जाती हैं और पानी चुंबक से भावित हो जाता है, चुम्बकीय बन जाता है। उस पानी में औषधीय गुण बढ़ जाते हैं। नाना प्रकार की बीमारियों को मिटाने के लिए वह पानी काम आता है। भोजन और पेय पदार्थों को यदि धूप में रखें तो उनका गुण-धर्म बदल जाता है। मंत्र विद्या का प्रयोक्ता जल को भावित करता है। वह मंत्र का जाप करता है और जल को अभिमंत्रित करता जाता है। वह जल शक्तिशाली हो जाता है। उसमें इतनी क्षमता आ जाती है कि वह बड़े-बड़े उपद्रवों को मिटा सकता है। फिर वह केवल पानी नहीं रहता और कुछ बन जाता है। हम एक भावना को लें और ५.१० मिनट तक मन को भावित करते जाएं। ऐसा प्रयत्न करें कि उस भावना से हमारा पूरा चित्त भावित हो जाए। केवल एक-दो बार दोहराने से कुछ नहीं बनता। उसमें समय लगाना चाहिए। पहले उच्च स्वर में बोल-बोलकर मन को भावित करें, फिर मन्द स्वर में भावित करें और फिर उच्चारण किए बिना मानसिक स्तर पर चित्त को भावित करें। हम तीनों प्रकार से मन को भावित करें और भावना को वहां तक पहुंचा दें जहां उसे पहुंचना है। जब मन भावित हो जाए, तब हम व्युत्सर्ग करें। मन के भावित हो जाने पर-मैं अपने पुराने स्वभाव का व्युत्सर्ग करता हूं, छोड़ता हूं, मेरा इसके साथ कोई संबंध नहीं है-ऐसा कहें। जब तक 'मैं' और 'मेरा' यह संबंध बना रहता है, तब तक आदत नहीं बदल सकती, स्वभाव नहीं बदल सकता। हमें व्युत्सर्ग करना होगा-'मैं' और 'मेरे' का। अब मैं इस आदत को छोड़ता हूं, मेरा इसके साथ कोई संबंध नहीं है। यह मेरी नहीं है और मैं इसका नहीं हूं। इतना हो जाने पर फिर वह साधक उद्यत होकर कहता है- 'मैं फिर नहीं करूंगा। इसके लिए मैं पूर्णरूप से सावधान और जागृत होता हूं।' यह पूरी प्रक्रिया है स्वभाव-परिवर्तन की, व्यक्तित्व के रूपान्तरण की, आदत को बदलने की। सामान्य धारणा यह है कि स्वभाव नहीं बदलता, नहीं बदला जा ६६ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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