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________________ और चेतना का कण-कण तादात्म्य स्थापित कर लेता है, तादात्म्य का अनुभव करता है, उस समय हमारी तैजस् की धाराएं इतनी फूट पड़ती हैं, फिर किसी का भय नहीं हो सकता। शरण में जाना-स्वभाव-परिवर्तन का पांचवां सूत्र है। जब हम अनन्त-चतुष्टयी की शरण में जाते हैं, तब हमारे सामने अनन्त-ज्ञान दौड़ता है। अनन्त-दर्शन की धाराएं दौड़ती हैं। अनन्त-आनन्द की धाराएं विकसित होती हैं और अनन्त-शक्ति के अनुभव के बीज फूटने लग जाते हैं। ऐसी स्थिति में रूपान्तरण कैसे नहीं होगा? जो उन क्षणों में विद्यमान होते हैं, उनमें वैसा परिणमन होने लग जाता है। भीतरी परिणमन शुरू हो जाता है। एक बिन्दु ऐसा आता है कि परिणमन होते-होते वह स्थूल रूप ले लेता है, सघन रूप ले लेता है और व्यक्ति सचमुच बदल जाता है। स्वभाव-परिवर्तन का छठा सूत्र है-भावना। यह है आत्म-सूचना-सेल्फ सजेशन। हम अपने आपको सूचना दें। जब हम गहरे ध्यान की स्थिति में बैठे हों, तब सूचना दें कि मैं क्रोध को छोड़ना चाहता हूं। मैं क्रोध से मुक्त हो रहा हूं। मैं क्रोध को नहीं चाहता। क्रोध के परमाणु मेरे पास नहीं रह सकते। क्रोध मुझे उत्तेजित नहीं कर सकता। क्रोध मेरे मस्तिष्क में और मेरे स्नायु-तंत्र में अपनी तरंग कभी नहीं फैला सकता। पूरे निश्चय और दृढ़ता के साथ ये सूचनाएं दें, सुझाव दें, अपने आपको संबोधित करें, भावित करें। चित्त को इतना भावित कर लें, उस पर इतनी पुट लगा लें कि चित्त बिल्कुल भावित हो जाए। एक सामान्य वस्तु है, किन्तु उसको भावित करने पर उसकी शक्ति बढ़ जाती है, क्षमता बढ़ जाती है। बिना भावित किए किसी भी वस्तु की क्षमता नहीं बढ़ती। अन्न जब आग पर पकाया जाता है, तब वह आग से भावित हो जाता है। रंगीन बोतलों में पानी सूर्य की रश्मियों में रखा जाता है। वह पानी रंग से भावित हो जाता है। सामान्य पानी की जो शक्ति है और सूर्य की रश्मियों में रंगीन बोतलों द्वारा भावित पानी की जो शक्ति है, उसकी तुलना नहीं हो सकती। उस भावित पानी में चिकित्सा के गुण उपलब्ध हो जाते हैं। इस पानी से असाध्य रोगों की चिकित्सा की जाती है। अनेक रोग मिटते हैं। पानी भावित किया स्वभाव-परिवर्तन का दूसरा चरण ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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