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________________ अहिंसा और शान्ति व्यक्ति-व्यक्ति में विभिन्नता है लेकिन क्यों ? एक आनुवंशिकी वैज्ञानिक कहेगा- मनुष्य में जो यह अंतर है, भेद है, उसका कारण है आनुवंशिकता। फिर एक चिन्तन आया कि मनुष्य-मनुष्य में जो अन्तर आया है, उसका कारण हैपर्यावरण, वातावरण। एक और सिद्धांत प्रस्तुत हुआ- मनुष्य-मनुष्य में जो अन्तर है, वह जीन के कारण है। किसी तर्कशास्त्री से पूछा जाए तो वह कहेगा- तर्क के कारण व्यक्ति-व्यक्ति में अन्तर आता है। ___ अनेकान्त कहता है- किसी एक दृष्टिकोण से अर्थ मत निकालो। सही निर्णय करना हो तो सब को साथ में मिलाओ। आनुवंशिकता भी एक कारण बन सकता है, वातावरण भी एक कारण हो सकता है, जीव भी एक कारण बन सकता है, तर्क भी एक कारण हो सकता है। इन सब कारणों को मिलाया जाए और उससे जो निष्कर्ष निकलेगा, वह सही होगा। सही निर्णय के लिए समग्र दृष्टिकोण का होना आवश्यक है। सब मनुष्य समान हैं 'सब जीव समान हैं और मनुष्य जाति एक है'- सह-अस्तित्व को व्यापक रूप देने के लिए इस धारणा की व्यापक प्रतिष्ठा आवश्यक है। सब जीव समान हैं- यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है किन्तु इसे एक बार छोड़ भी दें। सब मनुष्य समान हैं- उनमें कोई शाब्दिक या मौलिक अन्तर नहीं है। यदि इस भावना को पुष्ट बनाया जाए तो सह-अस्तित्व को एक व्यावहारिक रूप मिल सकता है। यदि यह भावना पुष्ट नहीं बनी तो जातिवाद की समस्या, रंगभेद की समस्या और संप्रदायवाद की समस्या हमेशा प्रस्तुत रहेगी और सहअस्तित्व का सिद्धांत व्यवहार के स्तर पर फलित नहीं हो सकेगा। भाषाई आधार पर प्रान्तों का बंटवारा : एक बड़ी भूल प्रश्न हो सकता है कि क्या यह असंभव है? क्या इस भावना की व्यक्ति-व्यक्ति के दिमाग में प्रतिष्ठ हो सकती है? प्रशिक्षण के द्वारा इस कार्यको संभव बनाया जा सकता है। ऐसा लगता है- अतीत में भेद को ज्यादा मूल्य दिया गया और उसकी परिणति बिखराव में हुई। बंटवारे की बात को मूल्य अधिक मिला, एकता की बात गौण हो गई। जाति के आधार पर, भाषा के आधार पर और संप्रदाय के आधार पर विभाजन को बल मिला । भाषाई आधार पर प्रान्तों का निर्माण कर हिन्दुस्तान ने सबसे बड़ी भूल की। इन भाषाई बंटवारेने समस्या को जन्म दिया है। यदि भाषाई आधार पर प्रान्तों का निर्माण नहीं होता तो बहुत सारे झगड़े नहीं होते। जातीयता के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था हिन्दुस्तान की एक बड़ी भूल है। यदि जातीयता के आधार पर आरक्षण की बात नहीं होती तो बहुत सारी समस्याएं नहीं उलझती। भेद : अभेद भेद हमारी उपयोगिता है- इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता। कोई भी आदमी रोटी खाएगा तो तोड़-तोड़कर खाएगा। एक साथ नहीं खाएगा। यदि एक साथ खाएगा तो उसे ग्रामीण कहा जाएगा। वह सभ्य नहीं कहलाएगा। उपयोगिता के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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