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________________ 78 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग है। समाज के किसी भी व्यक्ति का शोषण नहीं करना, लूट-खसोट नहीं करना, पीड़ा नहीं पहुंचाना, आघात नहीं करना, हीन भावना पैदा नहीं करना आदि-आदि समाजाभिमुखी अहिंसा है। आज समाजाभिमुखी अहिंसा की ओर ध्यान बहुत कम है। स्वाभिमुख अहिंसा की ओर भी ध्यान केन्द्रित नहीं है। केवल छोटे प्राणियों की ओर अभिमुख अहिंसा ही ज्यादा चल रही है। चींटी को नहीं सताना, नहीं मारना उसका एक निदर्शन बन सकता है। एक चींटी मर जाए तो मन में थोड़ी ग्लानि होती है। यदि मनुष्य का शोषण हो जाए, उत्पीड़न हो जाए तो शायद उतनी चिंता नहीं होती। किसी का गला काटने पर भी संभवतःइतना प्रकंपन नहीं होता जितना एक चींटी को मार देने पर हो जाता है। जातिवाद : सह-अस्तित्व में बाधक इस स्थिति में सह-अस्तित्व के सिद्धांत को विकसित करना बहुत जरूरी है। "सब मनुष्य समान हैं" यह अहिंसा का एक- आधारभूत सिद्धांत है। मनुष्य जाति एक है- इस स्वर की उपेक्षा से मानव समाज का विकास अवरुद्ध हुआ है। जातिवाद और संप्रदायवाद ने सह-अस्तित्व को बहुत हानि पहुंचाई है। यह मान लिया गया कि कुछ मनुष्य जन्मना ऊंचे होते हैं और कुछ मनुष्य जन्मना नीचे होते हैं। इस धारणा ने सह-अस्तित्व के सिद्धांत को चूर-चूर कर दिया। एक गांव जो बसेगा, उसमें बड़े लोग तो गांव के मध्य में रहेंगे और हरिजन गांव के छोर पर रहेंगे। अन्त्य कुल में पैदा हुए हैं अत: अंत में ही रहेंगे, एक साथ नहीं रह सकते, एक साथ नहीं बस सकते। उन्हें साथ में रहने का अधिकार नहीं। इस जातिवाद ने उच्च माने जाने वाले लोगों में अहंकार को बढ़ावा दिया और निम्न माने जाने वाले लोगों में हीनभावना को जन्म दिया। जहां अहंकार और हीन-भावना होती है, वहां सह-अस्तित्व नहीं हो सकता। जहां सह-अस्तित्व नहीं होता, वहां अहिंसा नहीं हो सकती। जहां सहअस्तित्व नहीं होता, वहां अनेकान्त नहीं हो सकता। अनेकांत का दर्शन है- प्रत्येक वस्तु को अनेक पहलुओं से जानो, देखो और समझो। हमने एकांगी दृष्टि से देखना शुरू कर दिया, जिससे अनेक समस्याएं उलझ गईं। व्यक्ति-व्यक्ति में विभिन्नता क्यों ? उपयोगिता के लिए विद्या की अनेक शाखाएं बनीं। मनोविज्ञान, समाजविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि अनेक शाखाएं विकसित हुई और उनके निर्णय भी अनेक रहे हैं। एक समाजशास्त्री कहेगा- वर्तमान समस्या का मूल कारण यह समाजशास्त्र है। एक अर्थशास्त्री कहेगा- वर्तमान समस्या का मूल कारण आर्थिक विषमता है। अलग-अलग दृष्टिकोण है प्रत्येक विद्याशास्त्र का । यदि हम एक व्यवस्था के आधार पर निर्णय लेंगे तो हमारा निर्णय गलत होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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