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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग लिए तोड़ना जरूरी है। आकाश अखण्ड है। एक मकान बना, अकाश विभक्त हो गया। मकान बनाने का अर्थ है- आकाश को तोड़ देना, बांट देना। जहां कहीं छत बनी, आकाश बंट गया। तर्कशास्त्र के बहु प्रचलित शब्द हैं घटाकाश, पटाकाश। ये भेद हमारी उपयोगिता से निर्मित हुए हैं। किन्तु हमने भेद को अधिक प्रधानता दी
और अभेद को बिलकुल भुला दिया। अनेकान्त ने कहा- जब भेद को प्रधानता दो तो अभेद को गौण कर दो। जब अभेद को प्रधानता दो तो भेद को गौण कर दो। भेद और अभेद को भुलाओ मत। दोनों आंखें बराबर खुली रहें, भेद और अभेद- दोनों का दर्शन एक साथ चलता रहे । अगर यह अनेकान्त का सामूहिक दर्शन चलता है तो समन्वय का दृष्टिकोण पनपता है, सह-अस्तित्व को बल मिलता है। अहिंसा का प्राणभूत सिद्धांत
सह-अस्तित्व का सिद्धांत विश्व शांति की समस्या का बहुत बड़ा समाधान है। सह-अस्तित्व का सिद्धांत अहिंसा का प्राणभूत सिद्धांत है। इस कथन में भी कोई अतिरंजना नहीं लगती कि सह-अस्तित्व के बिना अहिंसा सफल नहीं, अहिंसा के बिना सह-अस्तित्व सफल नहीं। सह-अस्तित्व और अहिंसा- दोनों को बांटा नहीं जा सकता। किन्तु आज हमारी बुद्धि इतनी भेद प्रधान बन गई है कि उसमें अभेद की बात को जोड़ना एक प्रश्न बना हुआ है। इन वर्षों में वैज्ञानिक परीक्षणों ने अनेक अवधारणाओं को बदल डाला। अतीत की पीढ़ी के किसी व्यक्ति से पूछा जाएसूरज घूमता है या पृथ्वी ? उसका उत्तर होगा- सूरज घूमता है, पृथ्वी स्थिर है वर्तमान विद्यार्थी इसी प्रश्न के उत्तर में कहेगा- पृथ्वी घूमती है, सूरज स्थिर है। यह एक बड़ा परिवर्तन है। प्राचीन व्यक्ति बीमारी का कारण बतलाएगा- वात, पित्त और कफ का वैषम्य । वर्तमान में कहा जाएगा- बीमारी किसी कीटाणु का परिणाम है वैज्ञानिक क्षेत्र में निरन्तर चल रहे प्रयोग और परीक्षणों से बहुत कुछ असंभव लगने वाली बातें संभव बनी हैं। सह-अस्तित्व का व्यक्ति-व्यक्ति की चेतना में अवतरण असंभव नहीं है किन्तु वह प्रयोग और प्रशिक्षण साध्य है। आज तक सह-अस्तित्व के विकास की दृष्टि से आवश्यक प्रयोग और प्रशिक्षण- दोनों नितांत उपेक्षित रहे हैं भेद है उपयोगिता : अभेद है वास्तविकता
सह-अस्तित्व को व्यावहारिक बनाने की दिशा में सोचें तो यह दर्शन स्पष्ट होगा कि मनुष्य में भेद भी है, अभेद भी है। भेद यदि उपयोगिता है तो अभेद वास्तविकता है। एक जाति है ब्राह्मण । यह एक उपयोगिता है। ओसवाल एक जाति है
और उसकी अपनी उपयोगिता है। अमुक आदमी सुजानगढ़ का है, अमुक आदर्म लाडनूं का है- यह भी एक उपयोगिता से उपजा भेद है। किन्तु जब बच्चा जन्म लेता है तब न वह ब्राह्मण होता है, न वह ओसवाल होता है, न वह किसी गांव का होता है।
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