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4. अहिंसा और शान्ति
4.1. सामाजिक जीवन की समस्या और सह-अस्तित्व
हम सामाजिक जीवन जी रहे हैं। समाज का एक घटक है- व्यक्ति। जैसा व्यक्ति होता है वैसा समाज होता है। समाज और व्यक्ति को सर्वथा अलग नहीं किया जा सकता। मूल प्रश्न है व्यक्ति का। सामाजिक जीवन की समस्या है- व्यक्ति की विभिन्नता । यदि सब व्यक्ति एक प्रकार के होते तो एक-सा चिंतन, एक-सा जीवन, एक-सा रहन-सहन, एक-सी जीवन प्रणाली, एक-सी राजनीतिक प्रणाली और एक ही धार्मिक प्रणाली होती, पर इन सबमें विभिन्नता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी पृथक् मान्यताएं रखता है। जीवन की प्रणालियां भिन्न-भिन्न हैं और सबका दृष्टिकोण भी भिन्न-भिन्न है। इसलिए जहां मतभेद होता है, वहां मनभेद भी आ टपकता है।
दो प्रकार की ग्रंथियों हैं- एक मतभेद की ग्रंथि और दूसरी मनभेद की ग्रंथि। इन दोनों ग्रंथियों से समाज संत्रस्त है। जातीयता और सांप्रदायिकता दुःख का एक कारण है और इससे अनेक मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। मनोविज्ञान में सामूहिक तनाव की बड़ी चर्चा है। समाज के द्वारा, समूह के द्वारा जो तनाव पैदा किया जाता है, उसमें राजनीतिक कारण भी हैं, समाज व्यवस्था भी एक कारण है, आर्थिक व्यवस्था भी एक कारण है और वैज्ञानिक कारण भी हैं। थोड़ा-सा मतभेद होता है,घृणा पैदा हो जाती है, द्वेष पैदा हो जाता है। ये मनोवैज्ञानिक कारण सबसे अधिक भयंकर होते हैं। विरोध : समाज की प्रकृति
दर्शन-शास्त्र में विरोध के तीन कारण बतलाए गए हैं- प्रतिबध्य-प्रतिबंधक, बध्य-बधक और सहानवस्थान।
एक विरोध है- प्रतिबध्य-प्रतिबंधक का। प्रतिबंधक शक्ति आती है और प्रतिबध्य में रुकावट पैदा हो जाती है। दोनों में विरोध है। आग का काम है जलाना किन्तु प्रतिबन्धक शक्ति पैदा हो गई तो वह जला नहीं पाएगी।
___ दूसरा विरोध है- बध्य-बधक का। चूहे और बिल्ली में एक शाश्वत प्रकृतिगत विरोध है । यह बध्य-बधक भाव का विरोध है।
तीसरा विरोध है- सहानवस्थान का। पानी और आग में सहानवस्थान विरोध है । ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते।
विरोध समाज की प्रकृति है, व्यक्ति की प्रकृति है। विरोध के वातावरण में व्यक्ति पलता चला आ रहा है। इन विरोधों के कारण आज काफी जटिलताएं पैदा हो रही हैं। सारा संसार अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है। क्या इन विरोधों को मिटाया जा सकता है ? क्या समस्या का कोई समाधान है ? हमारे सामने यह प्रश्न है।
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