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________________ 73 अहिंसा और निःशस्त्रीकरण छोटे जीव और छोटे-से-छोटे पदार्थ- परमाणु तक के अस्तित्व को स्वीकारना और उनके साथ छेड़छाड़ न करना। अपने अस्तित्व की भांति दूसरों के अस्तित्व का भी सम्मान करना। अहिंसा का पहला सिद्धांत यह आत्मौपम्य का सिद्धांत अहिंसा का पहला सिद्धांत है। पदार्थ के अपरिग्रहण का सिद्धांत अहिंसा का उच्छ्वास है, प्राण-तत्त्व है। यही अहिंसा का सम्यग् दर्शन है। जो लोग इस दर्शन को नहीं जानते, वे अपने संकुचित स्वार्थों की सीमा में जीते हैं। उनकी पूर्ति के लिए हिंसा का उच्छृखल प्रयोग करते हैं और पर्यावरण का प्रदूषण भी पैदा करते हैं। हिंसा की बाढ़ केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही अवांछनीय नहीं है किन्तु पर्यावरण की दृष्टि से भी अवांछनीय है। इहलौकिक और पारलौकिक दोनों दृष्टियों से अवांछनीय है। इसीलिए महावीर ने कहा था एस खलु गंथे- अहिंसा ग्रन्थि है। एस खलु मोहे- यह मोह है। एस खलु मारे- यह मृत्यु है। एस खलु णारए- यह नरक है। तं से अहिंयाए-- हिंसा मनुष्य के लिए हितकर नहीं है। तं से अबोहीए- वह बोधि का विनाश करने वाली है। इस स्वर का उदात्तीकरण ही पर्यावरण प्रदूषण में उलझे समाज में एक नया प्रकम्पन पैदा कर सकेगा। अभ्यास 1. शस्त्र की परिभाषा करते हुए बतायें कि उससे शांति को क्यों नहीं सिद्ध किया जा सकता? 2. पर्यावरण का अहिंसा के साथ क्या संबंध है ? क्या उच्छृखल __ औद्योगिक विकास मनुष्य के अस्तित्व को चुनौती नहीं है ? 3. व्यक्ति को समष्टि के साथ जोड़ने वाला तत्त्व क्या है तथा उसका विकास कैसे किया जा सकता है ? 4. हिंसा समस्या का समाधान क्यों नहीं है, विस्तार से समझायें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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