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आहसा आर निःशस्त्राकरण
एक अफसर का कद बहुत नाटा था। कार्यालय में एक कर्मचारी से उसका दोस्त मिलने आया। उसने पूछा--अफसर कौन है? कर्मचारी ने सामने बैठे व्यक्ति की ओर इशारा किया। मित्र ने कहा-अरे यह तो बहुत छोटा है। कर्मचारी बोला-मुसीबत जितनी छोटी हो, उतना ही अच्छा है। वर्तमान संदर्भ
हम जितना संयम करेंगे, समस्या उतनी ही छोटी होती चली जाएगी, वह लम्बी नहीं बनेगी, भयंकर और विकाराल नहीं होगी। यदि आज सचमुच विश्व को पर्यावरण संतुलन की चिंता है, उससे होने वाले परिणामों की चिन्ता है तो उसके लिए धर्म का पाठ, अहिंसा और संयम का पाठ समझना सबसे ज्यादा जरूरी है। संयम की बात केवल मोक्ष के संदर्भ में ही नहीं कही गई है। धार्मिक लोग भी प्रायः संयम और अहिंसा की बात मोक्ष के संदर्भ में करते हैं। जिसे मोक्ष जाना ही नहीं है, वह क्यों इसको मानेगा ? मोक्ष के संदर्भ में धर्म की बात करना उसका एक पहलू है किन्तु जीवन के संदर्भ में वह बहुत मूल्यवान् है। इस सचाई को वर्तमान संदर्भ में समझना जरूरी है। यदि धर्म की बात को वर्तमान युग की समस्याओं के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाए, अधर्म
और हिंसा से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों और कठिनाइयों के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाए तो प्रत्येक व्यक्ति धर्म का मूल्यांकन करेगा, अहिंसा और संयम का मूल्यांकन करेगा, धर्म की बात बहुत व्यापक बन जाएगी। धर्म का एक सूत्र है-अतीत की भूलों को न दोहराना। प्रत्येक व्यक्ति यह संकल्प ले-मैंने अब तक जो भूलें की हैं, उन्हें पुनः नहीं करूंगा, जो प्रमादवश किया है, उसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी। यह संकल्प समस्या के सघन तिमिर में समाधान का दीप बन सकता है।
3. 6. वनस्पति जगत् और हम मनुष्य और वनस्पति-दोनों हम-साथी हैं। वनस्पति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है, किन्तु मनुष्य के बिना वनस्पति का जीवन संभव हो सकता है। हम आदिम युग को देखें, यौगलिक युग को देखें। उस समय जीवन की सारी आवश्यकताएं कल्पवृक्ष पर निर्भर थीं। वह प्रत्येक कल्पना को पूरा करने वाला वृक्ष था। यौगलिक जीवनकी अपेक्षाएं-भोजन, वस्त्र आदि कल्पवृक्ष से पूरी होतीं। मकान, आभूषण, मनोरंजन के साधन, श्रृंगार, साज-सज्जा, रहन-सहन, सब कुछ कल्पवृक्ष पर आश्रित था। कल्पवृक्ष के बिना यौगलिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यौगलिक युग के बाद मनुष्य ने साथ रहना सीखा, गांव बसाना सीखा, मकान बनाना सीखा, खेती करना सीखा। पहले कल्पवृक्ष ही उनका मकान था। यौगलिक युग के अन्तिम समय में पहला मकान बना। मकान का नाम था अगार। पहला मकान लकड़ी से बना । अब-वृक्ष से बना इसलिए मकान का नाम अगार हो गया। उस समय न ईंट थी न पत्थर थे। पूरा मकान लकड़ी से निर्मित हुआ।
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