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________________ अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग . पांचवें कालखण्ड की काल-अवधि है- इक्कीस हजार वर्ष । कहीं काल की उदीरणा न हो जाए ? इक्कीस हजार वर्ष बाद आने वाली स्थिति इक्कीसवीं शताब्दी में ही न आ जाए ? क्योंकि वैज्ञानिक उद्घोषणा है इक्कीसवीं शताब्दी का मध्य दुनिया के लिए भयंकर होगा । उसमें केवल साठ वर्ष बच रहे हैं। जो पीढ़ी आज जन्म ले रही है, वह इस भयंकरता से गुजरेगी। यदि हम नहीं संभले तो सामने दिखने वाला खतरा भयंकर बन जाएगा । सम्भव है, काल की उदीकरण हो जाए। काल कर्म की उदीकरणा में निमित्त बनता है तो हो सकता है, शायद कर्म भी कभी-कभी काल की उदीरणा में निमित्त बन जाए। समाधान-सूत्र 64 इस समस्या के जो समाधान - सूत्र हैं वे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। पुराने लोग कहा करते थे- जल को घी की तरह बरतो । यह अवधारणा थी- असंख्य जीव मरते हैं तो जल की एक बूंद काम आती है। जल की एक बूंद में असंख्य जीव होते हैं। धर्म का तत्त्व समझते हुए बच्चों को कहा जाता था- देखो ! एक गिलास पानी में तुम्हारे कितने मां-बाप हैं। इसका मतलब होता था - अनन्तकाल से परिभ्रमण करते हुए इस जीव ने कितने मां-बाप बनाए हैं। जिनकी हिंसा की जा रही है, उनमें न जाने कितने पुरखे अपने हैं। ऐसी बातें कहकर पानी का घी की तरह उपयोग करने का रहस्य समझाया जाता। पुरानी पीढ़ी के लोग एक-आध बाल्टी में स्नान कर लेते थे। आजकल ऐसा करना समझदारी की बात नहीं मानी जाती है। जब तक व्यक्ति नल के नीचे न बैठ जाए, दस बीस बाल्टियां शरीर पर न ढुल जाए तब तक अच्छा स्नान नहीं होता । सीमातीत उपभोग आज असंयम कितना बढ़ गया है। हर बात में असंयम है। बिजली का कितना अनावश्यक उपभोग हो रहा है ? बत्ती जला देते हैं और वह सारी रात जलती रहती है। क्या सारी रात बत्ती का प्रकाश जरूरी होता है ? पंखा चलाते हैं और दिनरात पंखा चलता रहता है। क्या यह असंयम नहीं है ? बिजली जले तो दिन-रात जले और पानी बहे तो दिन-रात बहे । कितना प्रबल है असंयम । इस स्थिति में ओजोन की छतरी कैसे नहीं टूटेगी ? कार्बन की मात्रा कैसे नहीं बढ़ेगी ? ऑक्सीजन में कमी क्यों नहीं आएगी ? पर्यावरण का संतुलन क्यों नहीं बिगड़ेगी ? संकल्प लें हम इस सच्चाई को समझें। भगवान महावीर ने कहा- इस सच्चाई को जानकर मेधावी पुरुष यह संकल्प ले-मैंने हिंसा और असंयम बहुत किया। मैं वह अब नहीं करूंगा। मैं अब अहिंसा और संयम की साधना करूंगा। जैसे-जैसे यह संकल्प बलवान् बनता जाता है, शक्तिशाली बनता है, वैसे-वैसे व्यक्ति में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है जैसे-जैसे संयम बढ़ेगा, असंयम कम होगा, कठिनाइयां भी कम होंगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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