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________________ अहिंसा और नि:शस्त्रीकरण 63 ___ भगवती सूत्र का यह वर्णन क्या परमाणु युद्ध से पैदा होने की स्थिति का वर्णन नहीं है? उन्होंने पहले कैसे देखा कि ऐसा कुछ होने वाला है ? आज जो चल रहा है, उससे ऐसा लगता है- आदमी ठीक उसी दिशा में जा रहा है, इसका अर्थ है- वह मौत की दिशा में जा रहा है और जानबूझकर आंख मिचौनी खेल रहा है, अपने आपको धोखा दे रहा है। आज की स्थिति देखते हुए यह भविष्यवाणी आश्चर्यजनक नहीं लगती। धोखा खा रहा है आदमी मालिक ने नौकर से कहा- यह लिफाफा ले जाओ, टिकट लगाकर पोस्ट ऑफिस में पोस्ट कर आओ। नौकर ने वापस आकर मालिक से कहा- यह लो टिकट। मालिक ने पूछा- यह टिकट क्यों लाए? क्या लिफाफा पोस्ट नहीं किया? उसने कहा- मैंने लिफाफा पोस्ट कर दिया। यह टिकट कैसे लाए ? जब मैं लिफाफा पोस्ट कर रहा था तब पोस्टमास्टर की नजर दूसरी तरफ थी इसलिए मैंने टिकट नहीं लगाया। बिना टिकट लगा लिफाफा पोस्ट कर टिकट को बचा लिया। आदमी दूसरों को धोखा देना चाहता है, पर वह यह नहीं सोचता है कि वह स्वयं धोखा खा रहा है। बिना टिकट लगा लिफाफा बैरंग माना जाता है। उसे छुड़ाने के लिए टिकट की कीमत से भी अधिक कीमत अदा करनी पड़ती है। प्रश्न है- धोखा किसने खाया ? मालिक ने या पोस्टमास्टर ने? वस्तुतः आदमी स्वयं को ही धोखा देता है, दूसरों को नहीं। उसमें यह प्रवृत्ति बढ़ रही है, वह अपने आपको धोखा देता चला जा रहा। मूर्छा इतनी प्रबल कि आदमी समझते हुए भी समझ नहीं पा रहा है। काल की उदीरणा न हो जाए आज सारे वैज्ञानिक भविष्य के प्रति चिंतित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के लोग अनेक बार घोषणा करते हैं- वनों की कटाई कम करें, पदार्थ और जल का सीमित प्रयोग करें। वैज्ञानिक स्तर पर आने वाली इन चेतावनियों के बावजूद सब वैसा ही चल रहा है। सब लोग वैसे ही कर रहे हैं, सरकारें भी वैसे ही चलती जा रही हैं। पैसे का लोभ सरकार को भी है, जनता को भी है, ठेकेदारों और अधिकारियों को भी है। इस पैसे के चक्र में, लोभ और असंयम के चक्र में सब फंसे हुए हैं। पर्यावरण प्रदूषण के प्रति बहुत चिन्ता दर्शायी जा रही है, किन्तु इसकी क्रियान्विति की चिन्ता नहीं है। जब तक अहिंसा और संयम का मार्ग समझ में नहीं आएगा तब तक पर्यावरण की बात समझ में नहीं आएगी, पर्यावरण की समस्या सुलझेगी नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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