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________________ 66 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग जीवन का नया दौर जीवन की आवश्यकताएं बढ़ीं। मनुष्य ने कपड़ा बनाना शुरू किया। पहला कपड़ा रुई से बना । उसका प्रणयन भी वनस्पति जगत् था। उसकी प्राप्ति के लिए मनुष्य ने कृषि खेती करना प्रारम्भ कर दिया। एक अन्तर आ गया केवल कल्पवृक्ष पर जो निर्भरता थी, वह उससे हटकर वनस्पति जगत् पर निर्भर बन गई। प्रवृत्ति का विस्तार होता चला गया। मकान और वस्त्र बनने लगे, फसलें उगने लगीं। जीवन का एक नया दौर शुरू हो गया, किन्तु सब कुछ वनस्पति जगत् पर निर्भर बना रहा। हम समाज के इतिहास को देखें। मनुष्य जगत् और वनस्पति जगत् दोनों साथ-साथ जीते रहे हैं। मनुष्य पहले जंगलों में वृक्षों के बीच रहता था। आजकल अधिकांश लोग शहरों में रहना पसंद करते हैं। हमने देखा- शहरों में बड़ी-बड़ी कोठियां बनी हुई हैं, किन्तु उनके चारों ओर छोटे-छोटे उद्यान लगे हुए हैं। प्रश्न हो सकता है कोठी के सामने बगीचा क्यों ? ऐसा लगता है आदमी ने जंगल को छोड़ा, गांव बसाया। उसका गांव में मन नहीं लगा इसलिए उसे गांव में पुनः जंगल बनाना पड़ा। प्राण शक्ति : मुख्य आधार वस्तुतः पेड़ के बिना आदमी का मन ही नहीं लगता। एक व्यक्ति को कविता बनाना है। यदि पेड़ के नीचे बैठ जाए तो अपने आप कल्पना आने लग जाएगी। पेड़ के नीचे कागज-कलम लेकर लिखना शुरू करें, कहानी बन जाएगी। जब हरा-भरा फल-फूलों से लदा हुआ वृक्ष आंखों को दिखाई देता है तो एक सूखा आदमी भी सजल बन जाता है, सरस बन जाता है। वनस्पति हमारी प्राणशक्ति का मुख्य आधार है। किसी व्यक्ति को कुछ देर के लिए काल-कोठरी में बन्द कर दिया जाए तो उसका दम घुटने लग जाएगा। जब व्यक्ति प्रातःकाल उद्यान में भ्रमण के लिए जाता है, तब उसके तन, मन और भाव-सब स्वस्थ बन जाते हैं। मनुष्य जगत् और वनस्पति जगत् का इतना गहरा संबंध रहा है, फिर भी मनुष्य के मन में उसके प्रति करुणा का अभाव बना हुआ है। मनुष्य के मन में एक क्रूरता छिपी हुई है। जिस वनस्पति जगत् से वह इतना कुछ पा रहा है, उसके प्रति जो करुणा, कोमलता, सहृदयता, हमदर्दी और भाईचारा होना चाहिए, वह उसके मन में नहीं है। जो जीवन के साथी हैं., जीवन देने वाले हैं, उनके प्रति भी दयालुता नहीं है। यह एक विडम्बना है। आत्मतुला भगवान महावीर ने आत्मतुला के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। महावीर ने वनस्पति और मनुष्य की जो समानताएं प्रस्तुत की हैं उन्हें आज विज्ञान प्रमाणित कर चुका है। महावीर की भाषा में मनुष्य और वनस्पति की समानता का रूप यह है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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