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________________ 58 आहसा आर अणुव्रतः सिद्धान्त आर प्रयार भी अहिंसा नहीं है। किन्तु उस हिंसा के आधार पर व्यक्ति या समाज को हिंसक नहीं कहा जाता। जिस समाज में आक्रमणकारी प्रवृत्तियां चलती हैं, उसी के लिए हिंसक शब्द का प्रयोग रूढ़ हो गया। अहिंसक समाज रचना का एक आधार यही है कि उसमें आक्रमणकारी प्रवृत्तियां नहीं होंगी, युद्ध नहीं होगा। अनाक्रमण की दीक्षा 'मैं आक्रमण नहीं करूंगा'- इस व्रत का अधिकतम प्रचार युद्ध वर्जना का अमोघ शस्त्र है। समाज का बड़ा भाग इस व्रत-दीक्षा से दीक्षित होता है तो सत्ता की कुर्सी पर बैठे लोगों में युद्ध का उन्माद पैदा नहीं हो सकता। जनता का बल राज्य के बल से अधिक समर्थ होता है। जनता के समर्थन के बिना कोई भी सरकार युद्ध नहीं लड़ सकती। अतः युद्ध-वर्जन के लिए जनता को प्रशिक्षित करना, अनाक्रमण की दीक्षा से दीक्षित करना अधिक उपयोगी हो सकता है। राज्य के स्तर पर होने वाले प्रयत्न युद्धवर्जन के लिए सफल होंगे या नहीं, नहीं कहा जा सकता। यह कहा जा सकता है कि जनता का अंकुश युद्ध के उन्माद पर एक नियंत्रण बन सकता है। यदि जनता उन्मादी हो तो शासक मतवाले हाथी की तरह अपने आप पर अंकुश खो देता है और उसका परिणाम जनता को ही भुगतना पड़ता है। खाड़ी युद्ध में ईराक की भूमिका कुछ इसी प्रकार की रही। वहां की जनता के समर्थन से 28 राष्ट्रों की सेना का मुकाबला करने का दुस्साहस ईराक को अब भारी पड़ा। इसलिए इस प्रकार की विनाशलीला से बचने के लिए जनता को अहिंसात्मक साधनों का प्रशिक्षण मिलना चाहिए ताकि अनायास उद्घाटित होने वाले युद्धों को रोका जा सके। 3.4. शस्त्र विवेक हत्या के साधन को जैसे शस्त्र कहा जाता है, वैसे हिंसा के साधन को भी शस्त्र कहा गया है। हत्या हिंसा होती है, किन्तु हिंसा हत्या के बिना भी होती है। अविरति या असंयम, जो वर्तमान में हत्या नहीं किन्तु हत्या की निवृत्ति नहीं है, इसलिए वह हिंसा है। हत्या के उपकरणों का नाम है द्रव्य-शस्त्र और हिंसा के साधन का नाम है भाव-शस्त्र । यह व्यक्ति का वैभाविक गुण या दोष है, इसलिए यह मृत्यु का कारण नहीं, पाप बन्ध का कारण है। द्रव्य-शस्त्र व्यक्ति से पृथक् वस्तु है। वह मूलतः हत्या का कारण बनता है। वह हत्या का कारण बनता है, इसलिए पाप-बन्ध का कारण भी होता है। शस्त्र तीन प्रकार के होते हैं1.स्वकाय-शस्त्र 2. परकाय-शस्त्र 3. उभय शस्त्र (स्वकाय और परकाय दोनों का संयोग)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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