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________________ अहिंसा और नि:शस्त्रीकरण जीव के छः निकाय हैं - 1. पृथ्वी 2. पानी 3. अग्नि 4. वायु 5. वनस्पति 6. त्रस । पृथ्वी द्वारा पृथ्वी का अपघात - यह स्वकाय - शस्त्र है । पृथ्वी से इतर वस्तु द्वारा पृथ्वी का प्रतिघात - यह परकाय - शस्त्र है। पृथ्वी और उससे भिन्न वस्तु- दोनों द्वारा पृथ्वी का उपघात - यह उभय शस्त्र है। वायु के सिवाय सबके लिए यही बात है। वायु का शस्त्र वायु ही है । चलने-फिरने, उठने-बैठने से वायु की हिंसा नहीं होती । चलने-फिरने में वेग होने पर तेज वायु पैदा होती है, उससे वायु की हिंसा होती है । 59 त्रस जीव स्थूल होते हैं, इसलिए उनकी हिंसा स्पष्ट जान पड़ती है । स्थावर जीव सूक्ष्म होते हैं, इसलिए उनकी हिंसा सहजतया बुद्धिगम्य नहीं है । स्थावर जीवों की अवगाहना का एक प्रसंग देखिए गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से पूछा -- भगवन् ! पृथ्वीकाय की अवगाहना कितनी है ? भगवान् ने कहा- गौतम ! चक्रवर्ती राजा की दासी, जो युवा, बलवती व नीरोग है तथा कला-कौशल में निपुण है, ऐसी दासी वज्र की कठिन शिला पर वज्र के लोढे से छोटी गेंद जितने पृथ्वी के पिण्ड को एकत्रित कर पीसे, बार-बार पीसने पर भी कितने पृथ्वीकाय के जीवों को केवल सिलालोढे का स्पर्श मात्र होता है, कितनों को स्पर्श तक नहीं होता, कुछ जीवों के संघर्ष होता है और कुछ जीवों को नहीं, कुछ एक पीड़ा का अनुभव करते हैं, कितने मरते हैं और कितने मरते तक नहीं, कितने पिसे जाते हैं और कितने नहीं पिसे जाते । स्थावर जीवों को छूने मात्र से कष्ट होता है । शस्त्र - विवेक के बिना अहिंसा की मर्यादा नहीं समझी जा सकता । 3.5. पर्यावरण और उसका संतुलन अ. पर्यावरण असंतुलन संयम को छोड़कर अहिंसा को नहीं समझा जा सकता, असंयम को छोड़कर हिंसा को नहीं समझा जा सकता। हिंसा और अहिंसा - ये निष्पत्तियां हैं, परिणाम हैं। इनकी पृष्ठभूमि में है मनुष्य का संयम और असंयम । एक भाषा में कहा जा सकता है - संयम का अर्थ है अहिंसा और असंयम का अर्थ है - हिंसा । जितनाजितना संयम उतनी - उतनी अहिंसा, जितना - जितना असंयम उतनी - उतनी हिंसा । आज हिंसा बढ़ी है और इसलिए बढ़ी है कि असंयम बढ़ा है। हम हिंसा को पकड़ें तो वह हाथ में नहीं आएगी। हिंसा कभी भी पकड़ी नहीं जा सकती। I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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