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________________ अहिंसा और अणुव्रत: सिद्धान्त और प्रयोग की जरूरत है । राजा संजय काल्पनिक भय से भयभीत होकर मुनि के सामने गया। मुनि ने कहा- मैं तुम्हें अभयदान देता हूं। तुम भी सबको अभयदान दो । आज विश्व प्रतीक्षा कर रहा है इस स्वर के पुनरुच्चारण की । छिपे हिमखंड को देखना 56 महावीर की वाणी में धर्म मंगल है। मंगल का पहला सूत्र है- अहिंसा । अहिंसा का आधार-सूत्र है - अभय और अभय का आधार-सूत्र है- आकांक्षा का संयम, इच्छा पर सम्यक् नियंत्रण | अहिंसा और हिंसा हमारी पकड़ में आती है । उन दोनों की आधारभित्ति पीछे छिपी रहती है । हिमखण्ड (आइसबर्ग) का सिरा दिखाई देता है। बर्फ का पहाड़ पानी में छिपा रहता है। हमलोग केवल शीर्ष की चर्चा करते हैं। धरती पर टिके पैरों की ओर कम ध्यान देते हैं। यह कहावत सच है कि पहाड़ की आग दिखालाई देती है, पैरों तले जल रही आग दिख नहीं पाती । हिंसा और अहिंसा का कोलाहल कुछ कर नहीं पायेगा । जरूरत है छिपे हिमखण्ड को देखने की । आकांक्षा को खुली छूट देकर भय, शस्त्र-निर्माण और हिंसा को कम करने की बात सोचना न सोचने के बराबर है । 3. 3. युद्ध और अहिंसा हिंसा के अनेक रूप हैं। उनमें सबसे भयंकर रूप है युद्ध । यह विधि या कानून की सीमा से परे है। साधारण स्थिति में हत्या एक दंडनीय अपराध है। युद्ध की स्थिति में मारना एक पुरस्कार योग्य कार्य है। युद्ध बहुत भयंकर है इसीलिए सबका ध्यान युद्ध-वर्जना की ओर जाता है। युद्ध सार्वजनिक समस्या नहीं है। उससे प्रभावित सब होते हैं, उसे लड़ने वाले सब नहीं होते। उसका संबंध शासक वर्ग और सैन्य वर्ग के साथ जुड़ा हुआ है, साम्राज्य-विस्तार की आकांक्षा और सुरक्षा के साथ जुड़ा हुआ है। राज्य के पास शक्ति का संग्रह असीम हो जाता है । इसलिए शासन की कुर्सी पर बैठे लोग जब चाहें तब रणभेरी बजा देते हैं, और जतना के माथे पर युद्ध के काले बादल मंडरा जाते हैं । युद्ध : एक अवधारणा भगवान् महावीर ने अहिंसा के सामान्य निर्देश दिए। उनमें युद्ध-व - वर्जन का निर्देश नहीं है । अहिंसा का निर्देश सबके लिए है। शासक वर्ग और सैन्य वर्ग के लिए भी है। उनका पालन करने वाले किसी पर आक्रमण नहीं कर सकते, युद्ध का प्रारम्भ नहीं कर सकते । प्राचीन काल में कुछ लोग युद्ध को प्रोत्साहन देते थे । संस्कृत साहित्य में उस विषय के अनेक सूक्त आज भी सुरक्षित हैं। उदाहरण स्वरूप जिते च लभ्यते लक्ष्मो, मृते चापि सुरांगना । क्षणभंगुरको देहः, का चिन्ता मरणे रणे ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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