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________________ 39 अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप एक विरोधाभास सुना जाता है कि कुछ पश्चिमी देशों में आतंकवाद का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। मन में एक विकल्प उठता है कि हिंसा के लिए व्यक्ति को इतना ट्रेंड किया जा रहा है, प्रशिक्षित किया जा रहा है तो क्या अहिंसा के लिए ट्रेनिंग की कोई आवश्यकता ही नहीं है ? ऐसा लगता है नहीं है। अहिंसा को हमने बिलकुल परित्यक्ता बना दिया है। हम बात करते हैं अहिंसा की और समाज में सारी तैयारी है हिंसा की। मेल कहां होगा? जिसके लिए कोई तैयारी नहीं, उसके लिए तो बहुत चर्चा करते हैं, आवश्यकता बतलाते हैं। आज समाज को अहिंसा की बहुत जरूरत है पर हमारा सारा प्रयत्न हिंसा के लिए हो रहा है। हिंसा के लिए शस्त्रों का निर्माण, हिंसा के लिए ट्रेनिंग, हिंसा का प्रशिक्षण । हमारी चाह तो एक दिशा में और प्रयत्न बिलकुल विपरीत दिशा में। क्या यह एक विरोधाभास नहीं है ? जीवन की विसंगति नहीं है ? ऐसी विसंगति पर हंसी भी आती है और मन में खेद भी होता है। यदि समाज में उत्पीड़न नहीं होता तो अहिंसा की बात किसी को सूझती भी नहीं। जब जापान में अणु-अस्त्रों का प्रयोग हुआ तो सारा विश्व हिंसा के महाप्रलय से भयभीत और आतंकित हो गया। अहिंसा की तरफ उसका ध्यान आकर्षित हुआ। उस समय हिंसा में आस्था रखने वाले लोगों की आस्था भी हिल गई और एक ही प्रश्न सामने आया कि यदि यही क्रम चालू रहा तो एक दिन मनुष्य जाति का बिलकुल संहार हो जाएगा। प्रश्नचिह्न अहिंसक के सामने पौराणिक कहानियों में कहा जाता है कि शंकर प्रलय करते हैं। अणुबम तो महाशंकर बन गया, जिसने इतना बड़ा प्रलय कर डाला। जो अहिंसा में विश्वास रखने वाले थे, उन लोगों ने विश्वशांति का अभियान शुरू किया। शांति के लिए प्रयत्न, निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्न, युद्धवर्जना के लिए प्रयत्न किए, किन्तु शस्त्रों का निर्माण और अधिक बढ़ गया। वैसे शस्त्रों का निर्माण हुआ, जो महाप्रलयंकारी हैं। केवल अणुअस्त्र ही नहीं, उससे भी भयंकर अस्त्रों का निर्माण शुरू हो गया। स्टारवार की कल्पना सामने आ गई, जो बहुत ज्यादा घातक है। नक्षत्रीययुद्ध, आकाशीययुद्ध- इनकी भी कल्पना सामने आ गई। विकास होता गया अस्त्रों के निर्माण का। एक ओर अस्त्रों के निर्माण की चर्चा बहुत तेजी पर है तो दूसरी ओर अहिंसा की चर्चा भी बहुत तेजी पर है। एक हाथ में घोड़ा नहीं रखना चाहता। वह एक हाथ में घोड़ा रखेगा तो एक हाथ में गधा रखेगा। गधा ऐसा बेवकूफ जानवर होता है, भोला होता है कि चाहे जो कुछ कर लो। घोड़ा तेज होता है। गधा रखना भी शायद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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